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________________ Shin Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirtm.org Acharya Shil kailassaganser Cyanmandir अ भूतवादी, और विद्यावान् और औषधि, जड़ी के प्रभावज्ञ, मनुष्य आये और कई उपचार कर थक गये, पर शान्ति न हुई और चैत्वन्य प्राप्त नहीं हुआ। तब प्रधान मन्त्री ने कहा, यह निश्चेष्ठ हो गई अतः अग्नि संस्कार करना चाहिये, जितने उपाय किये वे सब निष्फल हो चुके। ऐसे मन्त्रीश्वर के वचन सुन राजा बोला मुझे भी रानी के साथ जला दो, क्योंकि इस प्राण प्रिया के विना संसार में जीना व्यर्थ है। ऐसे राजा के वचन सुन मन्त्रीश्वर और नगर के लोग योले, हे । राजन् ! यह आपका कार्य अयोग्य है, आपको करना उचित नहीं। ऐसे प्रजा के वचन सुन राजा फिर बोला-इसका और मेरा मार्ग एक है, दो नहीं। चन्दन काष्ठ मंगालो और चिता बनवायो। यह कह रानी के साथ श्मशान में गया, वहां कई प्रकारके अशुभ बाजे बाजने लगे। नगर * के नरनारी रोने लगे, चारों ओर रोदन ध्वनि से आकाश और पृथ्वी पूर्ण हो गई। प्रतवन में पहुंचते ही चन्दन काष्ठ से चिता बनाई गई, राजा भी रानी सहित उस पर बैठ गया। इतने में रोती हुई वह पारिवाजिका दूर से आई और राजा से कहने लगी, हे देव ! यह साहस करना 11 उचित नहीं, यह अलौकिक बात है । यह सुन राजा ने कहा, हे भगवती ! यदि ऐसा है तो इस रानी के साथ " २४ For Private And Personal use only
SR No.020072
Book TitleAshtaprakari Pooja Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaychandra Kevali
PublisherGajendrasinh Raghuvanshi
Publication Year1928
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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