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________________ Acharya Sa v San Mahavir Jain Aradhana Kendra anmanda इस प्रकार कहने लगी। हे वत्स! धन्य है वह माता जिसने तुझको दूध पिलाकर पाला और गोद में खिलाकर, इतना बड़ा किया। फिर अपनी आत्मा को निन्दा करती हुई पूर्ण पश्चात्ताप करने लगी। राजा ने नगर में सूचना भेजकर बड़े मङ्गल वाद्य औ रगान के साथ जन्मोत्सव और पुर प्रवेश कराया। घर पर जाकर आग्रह से पुत्र को राज्यभार दे दिया और कहने लगा हे पुत्र ! मैं अब धर्म करताना दीक्षा लूगा । धिकार हो इस राज्य को, जिसके लोभ से मैंने रत्न समान तुझ प्रिय पुत्र को भयंकर अटवी में अशुचि पदार्थवत् केकवा दिया। पाप बुद्धि से मैंने यह बड़ा अकार्य किया। इस संसार के पदार्थ अनित्य हैं, मैंने । वैराग्य धारण कर जिनमत में आदर किया है। ऐसी पिता की बात सुन कर विनयंधर कुमार बोला हे पिताजी! जिस प्रकार आप मुझको वैराग्य से राज्य देना/चाहते हैं वैसे मैं भी संयम में इछा करता हूँ। इस प्रकार कुमार ने विचार कर अपना राज्य सार्थवाह को देकर श्री विजयसूरि प्राचार्य के पास पिता के साथ दीक्षा ले ली। इस राजा के राज्य पर विमल कुमार स्थापन हुआ, उसने पिता को दीक्षा की आज्ञा दी, नगर में बड़ा उत्सव किया। वे दोनों साधु गुरु की आज्ञा में आदर करते हुए, तपस्या धारण करते, संयम मार्ग में उद्योत करते, गुरु " के साथ विहार करते थे। अन्त अवस्थामें संयम पालकर अनशन अङ्गीकार कर शुभ ध्यान सहित काल करके दोनों । नामकरण विनि For Private And Personal use only
SR No.020072
Book TitleAshtaprakari Pooja Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaychandra Kevali
PublisherGajendrasinh Raghuvanshi
Publication Year1928
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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