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________________ Shin Mahavir Jain Aradhana Kendre www.kobatirtm.org Acharya Shil kailassaganser Cyanmandir इस प्रकार परस्पर विषय सुख भोगते हुए उन दोनों का समय बीतता था । अनन्तर पूर्व जन्म कृत दोष उदय आया। पूर्वभव में इसने जो मुनिराज के शरीर की दुर्गन्ध से घृणा की थी वह कर्म उदय आया, उस । 1 के सुन्दर देह से दुर्गन्ध उछल सब जगह अन्तःपुर में फैल गई। किसी से नहीं सहा गया, कोई भी इसके पास न रहा, सब दूर चले गये । उस रानी के शरीर की यह दशा देख राजा कई वैध और मंत्रवादी और तत्त्रवादियों 0 को बुलाने लगा। सब लोगों ने कई उपाय किये पर रोग दूर न हुमा, अन्त में उन्होंने यह कह दिया यह गेगा असाध्य है। तब राजाने रानी को घोर अटवी में भेज दिया और वहां दूर२ सुभट उसकी रचा के लिए रख दिये। । ___ वहां रानी मन में धिक्कार देती हुई और दुःख भोगती हुई इस प्रकार चिन्ता करने लगी कि मेरे इस * जीवन से मरना अच्छा है देखो ! मेरा पहले कैसा अच्छा सुन्दर शरीर था वह क्षणमात्र में नष्ट हुआ । हाय !! 4 इस कर्मरूप कृतान्त ने मेरी कैसी विडम्बना की। मैंने पूर्व भव में बड़े घोर पापकर्म किये हैं उनका यह फलहै। रे जीव ! अब तू क्यों उदास होता है ? इस प्रकार विचार करती, शुद्ध और पवित्र परिणाम से अपने दुःख का समय बिताती थी। जिस सुन्दर वृक्ष के नीचे रहती थी उसी की एक शाखा पर शुक का जोड़ा रहता था। जिस कोटर में ये दोनों निवास करते थे वह मानो राजभवन के झरोखे के तुल्य प्रतीत होता था। एक दिन रानी पलंग PREPARAN For Private And Personal Use Only
SR No.020072
Book TitleAshtaprakari Pooja Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaychandra Kevali
PublisherGajendrasinh Raghuvanshi
Publication Year1928
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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