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________________ Shin Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirtm.org Acharya Shil kailassaganser Cyanmandir देखने लगा, तब देव ने शादलसिंह का रूप धारण किया, कुमार ने अष्टापद (सिंह) का रूप दीया। तय । । देवता ने मायावी रूप छोड़ कर अपना मूल रूप (देवत्व) धारण किया और प्रत्यक्ष होकर दर्शन दिये। कुमार के प्रभाव से सन्तुष्ट होकर कुमार से बोला "अहो सत्पुरुष शिरोमणि, राज कुमार ! जैसी इन्द्र महाराज ने आप है की महिमा की थी, हमने उसको प्रत्यक्ष प्रांखों मे देख लिया, आप अति पुग्यवान हैं। हे धर्मधारक ! आप अपनी मनो वांच्छित इष्ट वस्तु मांगो, मैं देने को उपस्थित हूं, प्रभाव से सन्तुष्ट हुया है। ऐसे देव के वचन सुनकर कुमार ने कहा हे सुरवर्य ! पदि श्राप प्रसन्न हैं तो मेरे नगर को देव नगरवत् कर दीजिये। ऐसे कुमार के बचन सुनते ही देवता ने 'तथास्तु" कह कर क्षण भर में नगर की रचना अनुपम कर दी। जिसके कोट चारों तरफ सुवर्ण मय और रत्न जटित हैं, ऐसे ही मध्य में गढ़ बनवाया है। जाली, झरोखे और गवाक्ष सब स्फटिक रनमय बने हैं। सब नगर देवपुरी सदृश है। उसके मध्य अलंकार । भूत राजकुमार के लिये राज भवन बनाया है। वहां राज कुमार अपनी स्त्री सहित सुख भोगता है। इस प्रकार नगर की रचना कर के राजकुमार के पास आया और सन्तोष देकर अपने देव लोक में चला गया। कुमार ने नगरी की रचना देव बारा की गई जानी, बड़े पुण्य का सम्बन्ध मिला ऐसा जान कर मन में सन्तुष्ठ हुआ। हृदय में हर्ष इतना हुआ जो समाया नहीं । इस प्रकार कुमार अत्यन्त सुख सहित रहने लगा। For Private And Personal use only
SR No.020072
Book TitleAshtaprakari Pooja Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaychandra Kevali
PublisherGajendrasinh Raghuvanshi
Publication Year1928
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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