SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 127
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shahalin Aradha kende Acharya Shakassagas Gyanmande M श्री अष्ट प्रकार ॥ ७ ॥ पूजा ج لالحاحا हूँ। पहले कीरभव में तुम्हारी एक स्त्री थी,तुम दोनों ने मिलकर श्री जिनराज के सामने फल पूजा की थी, जिसका फल यह हुआ कि तुमने इतनी राज्य लक्ष्मी पाई है। तुम्हारी स्त्री भी फलदान के प्रभाव से देवलोका . में गई और वहां से होकर राजपुर में राजा की पुत्री उत्पन्न हुई है। तूने एक आम का फल मुझे भी दिया। था, जिससे मैंने भी श्री जिनराज की पूजा की थी, जिसका फल मैंने बड़ी ऋद्धि पाई है। जब तुम गर्भ में थे। तब तुम्हारी माता को अकाल आमफल खाने का दोहद उत्पन्न हुआ. उसको मैंने ही पूर्ण किया था। जो । तुम्हारी शुकभव में भार्या थी वह राजपुर नगर में अमरकेतु राजा के पुत्री चन्द्रलेखा नामक उत्पन्न होकर यौवनावस्था को पास हुई है, उसका स्वयंवर मण्डप रचाया गया है, उसमें कई राजकुमार आयेंगे। तुम अपने पूर्वभव का संबध बताने को एक शुकमिथुन कोचित्रपट में चित्रित करा कर लेजाना और उस राजकुमारी को प्र दिखलाना । उस चित्र को देखते ही वह राजकुमारी जाति स्मरण ज्ञान से तुमको पहिचान कर वरमाला पहिना देगी, फिर उसके साथ तुम्हारा पाणिग्रहण होगा। इस बात में सन्देह मत जानो। यह तुम्हारे पूर्व ना " जन्म की कथा है। ऐसा कहकर वह दुर्गत देवता अपने स्थान चला गया। उधर स्वपंपररामण्डप पनाकर सय राजाओं को निमन्त्रण भेजा गया और इस राजा को भी बुलावा, ! श्राया, तब राजकुमार भी शुकयुगल का चित्र पट साथ लेकर स्वयंवर में गया विहां कई राजकुमार पाये, और التحليلي For Private And Personal Use Only
SR No.020072
Book TitleAshtaprakari Pooja Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaychandra Kevali
PublisherGajendrasinh Raghuvanshi
Publication Year1928
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy