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________________ Shn Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संस्कृतच्छाया = जिनवर फल पूजया, प्राप्यते परमर्द्धि सम्पत्तिः । यथा कीर मिथुन केन दरिद्र नारी सहित्र केन ॥ २ ॥ व्याख्या = श्री वीतराग भगवान् के सन्मुख फल पूजा के करने से प्राणी को उत्कृष्ट ऋद्धि और राज्यादिक की सम्पत्ति शु पक्षी के जोड़े और दुर्गता नामक दरिद्र स्त्री के जैसे प्राप्त होती है । अथ कथा प्रारभ्यते । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इस पृथ्वी मण्डल में इन्द्रनगरी तुल्य काञ्चनपुर नामक नगरी है, वहां १८ वें तीर्थङ्कर श्री अरनाथ स्वामी का मन्दिर है, उसके सामने उत्तम कमलवत् कोमल पत्ते और मंजरी और मधुर फल युक्त एक बड़ा मनोहर आम का वृक्ष है । उसके कोटर ( छिद्र) में एक शुक पक्षी का जोड़ा रहता था । उस मन्दिर में कई बार - महोत्सव होते रहते थे । उस नगरी के राजा का नाम जयसुन्दर था, श्री जिनराज की पूर्ण भक्ति करता था । एक समय बड़े उत्सव के साथ नगर के लोगों के समुदाय सहित उस राजा ने फल पूजा की । वहां एक दुर्गता नामक दरिद्र स्त्री रहती थी, वह राजा आदि को फल पूजा करते देख कर विचार करने लगी; धन्य है यह लोग जो अनेक प्रकार के फलों से श्री जिन भगवान् की भक्ति पूर्वक फल पूजा करते हैं । For Private And Personal Use Only
SR No.020072
Book TitleAshtaprakari Pooja Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaychandra Kevali
PublisherGajendrasinh Raghuvanshi
Publication Year1928
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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