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________________ Sh i n Aradhen Acharya Sha Kalassagar Gyanmandie 40प्रष्ट इधर रानी भी मनुष्य सुख बानन्द से भोग रही है इतने में वह जिनमती देवी च्युत होकर उसी नगर में सार्यवाह सागरदत्त के पुत्री तुलसा नामक सेठाणी की कुछि में उत्पन्न हुई, माता-पिता ने उत्सव कर उसका । नाम सुदर्शना दिया। वह बहती २जव यौवनावस्था को प्राप्त हुई तप एक दिन श्रीजिनमन्दिर में कनकमाला रानी से मिलाप हुआ, तब रानी ने कहा-हे वाई! यह मन्दिर अपन ने बनवाया है देख ऊपर स्वर्ण कलश के ऊपर रन.प्रदीप रक्खा है, अपन ने श्री ऋषभदेव स्वामी के दर्शन कई बार किये हैं और पहिले दीप पूजा की थी यह उसका प्रभाव है, जो अपन दोनो धन, माद्धि भोग ही। ऐसे वचन सुनते ही सुदर्शना विचार करने लगी, विचार करते२ उसको जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ, जिससे उसने पूर्व भव का सब अधिकार देखा और कहा-हे सखी! तुमने अच्छा किया जो मुभको प्रतिबोध । दिया, यह कह कर अत्यन्त स्नेह से मिली । दोनों ने उत्तम कुल में श्रावक व्रत पालन किया, अन्त में शुद्ध परिणानों से मैर कर सार्थसिद्ध विमान में देवतापने उत्पन्न हुई। वहां देव सुख भोग कर च्युत हो इस मनुष्य । 'भव में सुख पाकर अन्त में कर्ने क्षय करके मोक्ष सुख की भद्धि प्राप्ति की। यह श्रीजिन पूजा का माहात्म्य कहा है जो भव्य प्राणी दीप दान करता है उसको इन दोनों सखियों के जैसे सुख, संपदा मिलती है, यह कथा केवल प्रतिबोध के लिये कही गई है। इतिथी जिनेन्द्र पूजारके दीपपूजा विषये पश्चमी जिनमती कथा सम्पूर्णम् । For Private And Personal Use Only
SR No.020072
Book TitleAshtaprakari Pooja Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaychandra Kevali
PublisherGajendrasinh Raghuvanshi
Publication Year1928
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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