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________________ Shin Mahavir Jain Aradhana Kendre www.kobatirtm.org Acharya Sha Kailassaganser Cyanmandir श्री अष्ठ। इस अवसर में देवलोक से वह जिनमती देवी कनकमाला रानी को प्रतियोध देने के लिये आई और रात्रि के पिछले महर में उससे कहा, हे कृशोदरी! तू क्या क्रीड़ा करती है ? देख पूर्वभव में श्री ऋषभदेव स्वामी ।। ४४ ॥ का मन्दिर बनवाया और दीपक पूजा करी थी उसका यह फल है। इस प्रकार प्रति दिन बाकर प्रतिबोध देती थी। रानी ने यह बात सुनी और आश्चर्य प्राप्त होकर विचार करने लगी, यह कौन है ? जो मुझे प्रति दिन आ २ कर उपदेश देवे है ? अब कोई अतिशय ज्ञानी मुनिराज श्रावेंगे तब इसका कारण अवश्य पूछूगी। इतने में तो एक ज्ञानी 1 मुनिवर बहुत साधु परिवार सहित आये, उनका नाम श्री गुणधर आचार्य था। बड़ी अतिशयवती ज्ञान की ऋद्धिk को धारण करते थे। उस नगर के पास उद्यान में आकर निवास किया। यह समाचार जब कनकमाला को श्रवणगोचर हुए तव राजा को साथ ले बड़े महोत्सव से परिवार के साथ गुरु को बन्दना करने गई, विधिवत् वन्दना करी वहां मुनिराज ने धर्मोपदेशना दी, अन्त में हाथ जोड़ कर रानी ने संदेह पूछा, हे भगवन् ! प्रति दिन प्रातः अर्थात् रात्रि के पिछले प्रहर में आकर कोई कहता है कि तू क्या क्रीड़ा करती है ? इस बात को सुनने का मुझे अत्यन्त कौतुक है सो कृपा कर कहो। यह सुन गुरु ने उसका पूर्व भव कहना प्रारम्भ किया, हे भद्र! तुम दोनों पहिले जन्म में जिनमती और विनयश्री नामक सखियां थीं, तुम दोनों ने ही श्री जिन भगवान् के मन्दिर में दीप पूजा की थी, उस प्रभाव । 4 से दोनों ही देवलोक में गई, वहां देव सुख भोग कर धनश्री का जीव च्युत होकर इस राजा की भार्यातु कन For Private And Personal use only الحلاج خليل حصاد
SR No.020072
Book TitleAshtaprakari Pooja Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaychandra Kevali
PublisherGajendrasinh Raghuvanshi
Publication Year1928
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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