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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - ( ४८ ) वैज्ञानिक लोग पहले यह बतलाते थे कि, एक सूई की नोक जितनी जगह में सैकड़ों परमाणु रह सकते हैं। अब वे ही वैज्ञानिक सूक्ष्म दर्शक यन्त्र द्वारा देखकर यह बता रहे हैं कि सूई की नोक जितनी जगह में लाखों अणु भी रह सकते हैं। इसके विपरीत हमारे पूर्वर्षि-ज्ञानी तो ऐसा कहते हैं कि, एक सूई की नोक जितनी छोटी जगह में अनन्तानन्त परमाणु, जीव आदि रह सकते हैं । वैज्ञानिक तो जैसे-जैसे उन्हें साधन मिलते गये, वैसे-वैसे आगे बढ़ते गये और पहले को मिथ्या ठहराते गये । उनका किसी चीज का नवीन ज्ञान होने पर, तदनुसार अपना मत बदलना किसी अंश में ठीक है; क्योंकि अपूर्ण पुरुष पूर्ण बात किस प्रकार कह सकता है ? तब अपूर्ण को पूर्ण मान लेने में कितनी भूल होती है, उसे पाठक सहज ही समझ सकेंगे। ___ इसलिए पूर्ण वस्तु का पूर्ण रूप से स्वीकार करने में तथा ऐसे सच्चे ज्ञान को बतानेवाले परमात्मा की उपासना करने में मनुष्य क्यों भूल करता है, यह समझ में नहीं आता। इसका कारण केवल एक ही है, उसका भवभ्रमण अभी बाकी है । इसलिए वह सच्चे को मिथ्या मानता है । अभी तक दुनियाँ की जितनी खोज हुई है, उन्हींके अनुसार संसार के नक्शे चित्रित किये जाते हैं; परन्तु अब ये नक्शे भी झूठे सिद्ध हो रहे हैं। क्योंकि, अभी कुछ इस प्रकार के ताजे समाचार प्रकाशित हुए हैं कि, अभी तक दूनियाँ की जिनती खोजें हुई हैं, उतनी ही अभी दूसरी दुनियाँ है । तब जैन-शास्त्र तो पुकार-पुकारकर कहते हैं कि, दुनियाँ बहुत विशाल है। असंख्यात योजन प्रमाण हैं । आज का विज्ञान सीमित है, इसलिए उसकी बातें कुएँ के मेंढक के समान है। कुएँ का मेंढक दुनियाँ को कुएँ जितनी ही बतलाता है, पर उसकी बात कोई नहीं मानता । उसी प्रकार अधूरी शोध-खोज करनेवालों की भी ऐसी बातें नहीं मानी जा सकती। For Private And Personal Use Only
SR No.020070
Book TitleArhat Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtivijay Gani, Gyanchandra
PublisherAatmkamal Labdhisuri Jain Gyanmandir
Publication Year
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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