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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आधुनिक विज्ञान आज विज्ञान दिन-दिन आगे बढ़ रहा है। उसकी इतनी बड़ी वृद्धि को देखकर मनुष्य चकित हो जाता है। परन्तु, यदि कुछ देर बैठकर टंडे दिल से विचार करेंगे, तो तुरत मालूम हो जायेगा कि, विज्ञान के बढ़ने से सुख-शांति की वृद्धि हुई या पहले से भी अधिक उत्तेजिक संहारक अस्त्र-शस्त्रों की ? हमें तो उसकी वृद्धि में विनाश के सिवाय और कुछ नहीं दीखता! हमारे ऋषि-महर्षि भी इन सब वस्तुओं को अच्छी तरह जानते थे; फिर भी वे उसके आविष्कार में न लगकर जनता के लिए आत्मविकास का ही सुन्दर मार्ग बता गये, उसका क्या कारण है ? साथ-ही-साथ वे यह भी मानते थे कि-जड़ वस्तु के आविष्कार में भयंकर विनाश है, आत्मा के मूल गुणों का तिरोभाव है, निर्दोष प्राणिओं का संहार है, पैसों की बर्बादी है और अमूल्य समय का व्यर्थ व्यय है। और, यह बात तो प्रत्यक्ष है कि, एक अणुबम-जैसी वस्तु का प्रयोग करने पर लाखों प्राणियों का संहार होता है और उसके निर्माण में लाखोंकरोड़ों रुपयों का खर्च होता है । यदि एक देश ने अणुबम बनाया, तो उसकी प्रतिस्पर्धा में दूसरे देश को वैसा बम बनाना ही पड़ेगा। इसके निर्माण में जितना धन व्यय होता, उसमें से वापिस एक कौड़ी भी नहीं मिलती । केवल संहार और वैरवृत्ति का पोषण होता है। ऐसे आविष्कारों से जगत का न कल्याण होता है और न होने वाला है। इस खर्च को बचा कर यदि दुखी दीन जनों के उद्धार के लिए इस द्रव्य का उपयोग किया जाये तो करोड़ों आदमियों का भला हो सकता है। इस प्रकार की बातें समझने की खास आवश्यकता है । For Private And Personal Use Only
SR No.020070
Book TitleArhat Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtivijay Gani, Gyanchandra
PublisherAatmkamal Labdhisuri Jain Gyanmandir
Publication Year
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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