________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www. kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ज्ञान क्रियाभ्यां मोक्षः
जैन - सिद्धान्त का आदेश हैं कि, केवल अकेले 'ज्ञान' तथा अकेली 'क्रिया' से मुक्ति नहीं मिलती । अकेला ज्ञान लंगड़ा है और अकेली क्रिया अंधी है । रथ दो पहियों द्वारा ही चल सकता है । मनुष्य दो भुजाओं द्वारा दुर्लघ्य समुद्र को तिर सकता है । उसी तरह आत्मा भी 'सम्यग्ज्ञान' तथा 'सम्यक् क्रिया' द्वारा ही मुक्ति प्राप्त कर सकती है। एक आदमी बम्बई जाने का रास्ता जानता है, पर वह केवल रास्ता जानने मात्र से ही वहाँ तक नहीं पहुँच पाता, वहाँ पहुँचने के लिए उसे चलना होगा, चलने से ही धीरे-धीरे यह अपने इष्टस्थान तक पहुँच सकता है । भोजन का नाम लेने मात्र से क्षुधा की शांति नहीं होती, उसके लिए तो भोजन बनाने की क्रिया करनी पड़ती है । पहले अंगीठी जलाना, उसके बाद भोजन बनाने के बाद भी जब तक खाने की क्रिया नहीं की जाती तब तक उदरपूर्ति नहीं होती । हाथ से निवाला उठाकर मुँह में डालने के बाद ही क्षुधा शांत होती है । उसी प्रकार 'सम्यकज्ञान' पूर्वक सविधि क्रिया की जाये तभी प्राणी मुक्तिपुरी में पहुँच सकता है। क्योंकि, अनंतकाल से आत्मा अज्ञान और असत्प्रवृत्ति द्वारा ही इन कर्मों को बांधता रहा है ! उन्हें नष्ट करने के लिए सम्यग्ज्ञान और सम्यक् क्रिया की नितांत आवश्यकता है ।
*****
For Private And Personal Use Only