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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २७ ) (३) स्थूल-अदत्तादानविरमण-व्रत इसी प्रकार गृहस्थ को चोरी का बिलकुल त्याग करना चाहिए। फिर भी यदि वह कारण विशेष से चोरी का संपूर्ण त्याग न कर सकता हो, तो भी उसे किसी की जेब कतरना, गांठ काटना, किसी की धरोहर को पचा जाना, ताले तोड़ना, खोटे बटखरे या कम अधिक मान-परिमाण रखना, घर में सेंध लगाना, लूट-पाट, धान्य की चोरी और ठगी इत्यादि चोरी का तो अवश्य त्याग करना चाहिए । (४) स्थूल-मैथुनविरमण-व्रत । गृहस्थ यदि ब्रह्मचर्य का सर्वथा पालन न कर सकता हो तो भी उसे परस्त्री का तो अवश्व त्याग करना चाहिए और अपनी स्त्री के साथ भी मर्यादित संयोग करना चाहिए अर्थात् महीने में कुछ दिन तो अवश्य ब्रह्मचर्य का पालन करना ही चाहिए। (५) स्थूल-परिग्रहपरिमाण-व्रत इच्छाओं का निरोध करने के लिए प्रत्येक वस्तु का नियम रखना । धन, धान्य, मकान इत्यादि वस्तुओं का आवश्यकता से अधिक संग्रह नहीं करना । उनका परिमाण करना । यदि व्यापार आदि द्वारा धन की वृद्धि हो जाये तो उसे धार्मिक स्थानों में और दीन-दुःखी की भलाई में खर्च कर देना चाहिए। (६) दिशापरिमाण-व्रत उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम इन चार दिशाओं उनकी मध्यवर्तिनी ईशान, नैऋत्य, आग्नेय, वायव्य चार विदिशाओं तथा उज़ और अधो दिशाओं की ओर जाने-आने का नियम रखना । For Private And Personal Use Only
SR No.020070
Book TitleArhat Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtivijay Gani, Gyanchandra
PublisherAatmkamal Labdhisuri Jain Gyanmandir
Publication Year
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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