SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ईश्वर का कर्तृत्व अनेक व्यक्तियों की यह मान्यता है कि, 'इस जगत का कर्ता ईश्वर है, सृष्टि का सर्जनहार ईश्वर है; क्योंकि सामान्य व्यक्ति द्वारा इस जगत की रचना होना अशक्य है।' परन्तु, उनकी यह मान्यता भ्रमपूर्ण है । ईश्वर को जगत्कर्ता मानने में अनेक दोष हैं । ईश्वर ने किसलिए जगत की रचना की ? जब जगत नहीं था, तब ईश्वर कहाँ था ? क्या ईश्वर को अकेला रहना अच्छा नहीं लगता था । इसलिए, उसने लीला करने के लिए, जगत की रचना की ? यदि ऐसा कहा जाये, तो ईश्वर बालक-जैसा सिद्ध होगा। ____ यदि कहा जाये कि, इस जगत की रचना ईश्वर ने की तब यह प्रश्न होगा कि, ईश्वर की रचना किसने की ? और, उसके रचनेवाले को फिर किसने बनाया ? इसकी परम्परा चलेगी तो उसका कहाँ जाकर अंत होगा? थोड़ी देर के लिए यदि ऐसा मान लें कि, ईश्वर ने जगत की रचना की तो फिर एक को सुखी, एक को दुःखी, एक को राजा, एक को गरीब, किसी को लूला, किसी को लंगड़ा, किसी को अंधा, किसी को अपंग तथा किसी को हृष्ट-पुष्ट इस प्रकार वैचित्र्य पूर्ण विश्व बनाने का क्या कारण है ? मान्य ईश्वर की दृष्टि में तो सब समान हैं, तब फिर एक को सुखी करना और दूसरे को दुःखी करना क्या ऐसा पक्षपात ईश्वर में हो सकता है ? एक को मारना और एक को जीवित रखना-ऐसा करने मैं ईश्वर के किस प्रयोजन की सिद्धि होती है ? इसके उत्तर में आप ऐसा कहें कि, यह सारी विचित्रता कर्म के कारण है, तो फिर नवीन पैदा हुए जीवों में कर्म कहाँ से आये ! इसलिए, मानना होगा कि, दुनिया अनादिकालीन है, For Private And Personal Use Only
SR No.020070
Book TitleArhat Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtivijay Gani, Gyanchandra
PublisherAatmkamal Labdhisuri Jain Gyanmandir
Publication Year
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy