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Acha
जैन साधु
जैन-साधु बननेवाले व्यक्ति हजारों-लाखों की दौलत को, मकान, बाग, बंगला आदि विपुल सामग्री तथा माता-पिता, भाई-बहन, पुत्र-परिवार आदि स्वजन-सम्बन्धियों को छोड़कर उनका मोह दूर कर क्षणभंगुर तुच्छ भोग-विलासों में जीवन बिताने से मुंह मोड़कर मुक्तिमार्ग की साधना के लिए जिनेश्वर-देव द्वारा प्ररूपित संयम के पवित्र मार्ग पर प्रयाण करने के लिए तैयार होते हैं और त्यागी गुरुदेवों के पास दीक्षा (संन्यास) लेते हैं। दीक्षा लेते समय उन्हें पाँच महान् प्रतिज्ञाएँ (महाव्रत) लेनी पड़ती हैं।
१. आजीवन छोटे या बड़े चर-अचर किसी भी जीव की हिंसा मन, वचन या काया से नहीं करना, न कराना और न करनेवाले का अनुमोदन करना । इस प्रकार समस्त जीवों की सूक्षातिसूक्ष्म रूप में रक्षा करना उनका प्रथम व्रत है। कहिए, सब जीवों की रक्षा के लिए ही वे संसार का त्याग कर साधु-संन्यासी बनते हैं। गृहस्थाश्रम में ऐसी सूक्ष्म दया का पालन नहीं किया जा सकता। जैन-साधु चाहे जैसा अवसर आये अग्नि का स्पर्श तक नहीं करते । कड़कड़ाती ठंड में भी अग्नि की धूनी नहीं लगाते, घोर गर्मी में पंखे का उपयोग भी नहीं करते। रात्रि के समय दीपक या बिजली की बत्ती का भी उपयोग नहीं करते ।
२. सदैव के लिए त्रिविध-त्रिविध झूठ का त्याग ।
३. चोरी का सर्वथा त्याग ! छोटी-से-छोटी वस्तु का भी मन-वचनकाया से उसके मालिक को पूछे बिना न उपयोग करते हैं, न कराते हैं
और न करनेवाले का अनुमोदन करते हैं । ___ ४. ब्रह्मचर्य (अब्रह्म का त्याग) जैन-साधु दीक्षा अंगीकार करते हैंउस समय से यावजीव-जीवनपर्यंत ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं। स्त्री का
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