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ए तो नि:संशय छे के 'दिगंबर जैन ' पत्रना ग्राहकोने अमुक अमुक ग्रहस्थो के व्हेनोना स्मरणार्थे पुस्तको भेट आपवानी योजना शरु थई छे त्यारथी ए दिशा तरफ अमारा गुजरातना केटलाक भाईओनु लक्ष दोरायुं छे अने प्रथम ज्यारे सूचनाओ करवाथीज तेमां फळीभूत थवातुं हतुं त्यारे हवे तो विना सूचना कर्ये आवी सहायता मळती जाय छे, एनो दाखलो आज पुस्तक छे के जे माटे रु. १२५) घोघा (भावनगर) निवासी स्वर्गवासी शेठ ठाकरशी नत्थुभाईना स्मरणार्थे शास्त्रदान माटे तेमना पुत्र छगनलालभाईए मोकलवा इच्छा दर्शावेली, ते उपरथी ए माटे एक पुस्तकनी पसंदगी अमो करवाना हता, पण ते पहेलो भाई छगनलालना स्नेही पालीताणा निवासी मुनीम धरमचंदजी हरजीवनदासे जणाव्यु के ए माटे हुँ जे पुस्तक तैयार करी मोकलुं तेज छपाववानुं छे, जेथी पछी एमणे आ पुस्तक के जेमां सदासुखजीविरचीत ‘भगवतीआराधना'. मांथी पाने ४०९ थी ४२२ सुधीनो, तेनी मूळ भाषामां उतारो करेलो छे ते तथा परचुरण पदो, स्तुतिओ, उपयोगी बोध वगेरेनो संग्रह लखी मोकलेलो, ते दाखल करीने आ पुस्तक 'दिगंबर जैन 'ना ग्राहकोने नवमा वर्षेनी पांचमी भेट तरीके प्रकट कर्यु छे.
वळी आ पुस्तकमां प्रथम स्वर्गवासी शेठ ठाकरशी नत्थुभाईना जीवननी ढूंक नोंध जे तेमना निकटना स्नेही .. आंकळावनिवासी शा माणेकचंद फूलचंदे लखी मोकलेली छे ते पण दाखल करी छे, जे बांचवाथी वांचकोने अणाशे के एक साधारण स्थितिना ग्रहस्थे पोता पाछळ शुभ कार्यों माटे रु. १५००) नी अखावत योग्य व्यवस्थापूर्वक करी छे. जैनोमां दाननी रकमो तो हजारो रुप्या नीकळे छे, पण तेनो बराबर रीते उपयोग थतो नथी, माटे समयने
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