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आराधनास्वरूप ।
नंतानंतपरिणति सहित कैसे जाने ? अर दूरवर्ती स्वर्ग नरक मेरु कुलाचलादिनिकू अर पूर्व भये जे भरतादिक रामरावणादिक अर सूक्ष्म परमाणू आदिक सर्वज्ञविना कोन जाने ? बहुरि परम हितोपदेशक विना जगतके जीवनिका उपकार कैसे होय ? तातै वीतराग सर्वज्ञ परम हितोपदेशक विना आप्तपणा नही संभवे हैं।
जिनकै शस्त्रादिक ग्रहण करना तो असमर्थता अर भयभीतपणा प्रकट दिखावे है, अर स्त्रीनिका संग वा आभरणादिक प्रकट कामीपणा रागीपणा दिखावे है तिनकै आप्तपणा कदाचित नही संभव है। तातै परीक्षा करि जाकै सर्वज्ञता अर वीतरागता अर परम हितोपदेशकता ये तीन गुण होइ, सो आप्त है । जाकै वीतरागता ही होइ अर सर्वज्ञपणा नही होई तो वीतरागता तो वटपटादिक अचेतन द्रव्यनिकैह क्षुधा तृषा रागद्वेषादिकके अभावः पाइये है, तिनकै आप्तपणा प्राप्त होइ. वा सर्वज्ञत्व विशेषण आप्तका नहि होय तो इंद्रियनिके आधीन किंचित् किंचित् मूर्तिक स्थूल निकटवर्ती वर्तमान वस्तूके जाननेवालेके वचनकी प्रमाणता होई । सो अल्पज्ञके कहे वचन प्रमाण नहीं । तातें अल्पज्ञानीकै आतपणा नहीं संभवे है तातै वीतराग " सर्वज्ञ" ऐसा कह्या । अर वीतरागता अर सर्वज्ञपणा दोय विशेषण ही आप्तकै कहिये तो वीतराग सर्वज्ञपणा तो मोक्षस्थानमें सिद्धनिकै पाइये है । यातैं परम हितोपदेशकपणा विना आप्तपणा नहीं बने है । तातै सर्वज्ञता वीतरागता परम हितोपदेशकता अरहंतहीकै संभवे है । बहरि श्रुत जो आगम ताका लक्षण श्री रत्नकरंड नाम परमागममें ऐसा कह्या है
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