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दिगंबर जैन ।
घटने वधने वा संक्रमण होनेयोग्य होइ तहां अप्रशस्तोपशम जानना । बहुरि जहां उदय आवने योग्य नही होइ अर स्थिति अनुभाग घटने वधने वा संक्रमण होने योग्य भी नही होइ तहां प्रशस्तोपशम जानना । बहुरि तिहां सम्यक्त्वप्रकृतिका उदय होते देशघातिस्पर्द्धकनिकै तत्वार्थ श्रद्धान नष्ट करनेकी सामर्थ्यका अभाव है । अर श्रद्धानकू चल मल अगाढ दोष करि दूषित करे है । जाते सम्यक्त्वप्रकृतिका उदयकै तत्त्वार्थश्रद्धानकै मल उपजावनेमात्रहीका सामर्थ्य है । तिह कारण” तिस सम्यक्त्वप्रकृतिकै देशघातिपना है। तिस सम्यक्त्वप्रकृतिके उदयकू अनुभव करता जीवकै उत्पन्न भया जो तत्वार्थश्रद्धान, सो वेदकसम्यक्त्व है, इसही• क्षायोपशमिक सम्यक्त्व कहिये है। जारौं दर्शनमोहके सर्ववातिस्पर्द्धकनिका उदयका अभाव है लक्षण जाका ऐसा क्षय होः बहुरि देशघातिस्पर्द्धकरूप सम्यक्त्वप्रकृतिका उदय होते बहुरि तिसहीका वर्तमानसमय संबंधीत उपरिके निषेक उदयकू नहीं प्राप्त भये तिन संबंधी स्पर्द्धकनिका सत्ता अवस्थारूप हैं लक्षण जाका ऐसा उपशम होतै वेदकसम्यक्त्व होय है, तातै याहीका दूसरा नाम क्षायोपशमिक सम्यक्त्व है ।।
अब इस सम्यक्त्वप्रकृतिका उदयतें जो श्रद्धानकै चलादिक दोष लागे है तिनिका लक्षण कहे हैं। अपने ही "जे आप्त आगम पदार्थरूप " श्रद्धानके भेदनिविर्षे चलायमान होइ सो चल है। जैसे अपना कराया हुवा अर्हत्प्रतिबिम्बादिक घि. "यह मेरा देव है।"
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