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अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग
पित्तको २ कफकी ३ सन्निपालकी ४ लोहीकी ५ येकसरीर की लार ही उपजेजीकी ६ परचायलयस्त अथवा गरमंवस्त अथवा कफ 'काची कलीमिटीस्त जोपुरषयेयणीषाय अरवाय पित्तकफनै करवावाला मिथ्याहारकरे मिथ्याविहारकरें त्यांदोन्यांमिथ्यां या हास्पर मिथ्याविहारकरिकै को पकूं प्राप्तडुवोजोवायपित्तकफदो स समुदाकीनीन्यूंत्र्यांवल्याऊपर त्वना परमांस परमेद यांनेविगाडेनानाप्रकार कार्यासकाअंकूरानै मस्साकायाकारकरिगुदा कैऊपरिकरछे तीनेवैद्य है सो बवासीर कहै सोछप्रकारकीईने लौकिकर्मैदोयप्रकारकाकहे येकतोषूनीं । अर १ वादी बूंनीतो जीमैयललोहीजाय। अरवादी जीमेलो होजायनहीं परपीडचि मचिमी अरबुजालउगेरेजीमैहोय येदोन्यूंबांडवांहींकाभेद अथसारीववासीरांकोपूर्वरूपलिष्यते अन्नकोपरिपाक या छीनरहहोयनहीं अन्नकूषिमैं ही रहे बंध कोष्टहोय रम्यमिमं दहोजाय डकार घणीच्यावे सरीरसहोजाय कूषिमैं प्राफरोहो य अंगामैपीडर है येजीमेलक्षण होयत दिजाणिजे ईपुरसकैचावा सीरहोसी अथवायकीववासीरको लक्षणलिष्यते जीकीगु दाकामस्सा हैसो सूकाञ्चरचिमचिमीनैलीयांहोय अरकालाल लाईनेलीयां परषरधरा रकठोर अरवांका तीषा फूटामूंढा का इसागुदाउपरिमस्साहोय परछोटाबोरसरसा कपास्यासरी सा अथवासरस्यूंससा अथवा कदंब काफूलरिससामस्साहोय अरजीकैमथवाय होय अरपसवाडामैं कांधा कटामै जंघा पेड़ में पांघरणीव्यथाहोय अरछींक परडकारत्र्यावेनहीं हियो भूक्लागेनहीं पास सास अभिमंद कर्णशब्द भ्रमयेभीहोय गो
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