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अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग
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रहेछै एकसौदश११० वर्षपर्येनमनुष्यका शरीरमैरसारणमात्र कोग्यान रहेछै १२० वर्षपर्यंतशरीरमें प्राएामात्रा रहे है जो मनुष्यकोशरीर निरो गोरहैतौ अरदशदशवर्षपाछै येलिष्यासोघटताजायचे ईमनुष्यकी आयुर्बलकोप्रमाण १२० वर्षको इतिहारकोपरिपाकगर्भ की उत्पत्तिबालकका पोषएणादिककीवि० अथवायकी प्रकृतिकोल क्षलि० छोटाकेशहोय रससरीरहोय लूषोशरीरहोय वाचालहो य चंचलमन होय आकासमैरहवाबाला सुपनाच्यावे येजीमेलसरा होयतो वायकी प्रकृतिजाणिजे प्रथपित्तकी प्रकृतिकोलक्षणलि जनानञ्अवस्थामें सुपेदवालश्रावैबुद्धिवानहोय श्ररपसेवघा
कधी होय सुपनामेंतेजदीषे येलक्षण होयतौपित्तकी प्रकृतिजा लिजैर अथकफकी प्रकृतिकोलक्षरालि० जीकीगंभीरबुद्धिहोय स्थूलांगहोय चीकरणाकेशहोय बलवानहोय स्वप्नमेंजलकास्थानदे षै येलक्षणजीमेहोयतीनॅकफकी प्रकृतिकहिजे ३ अथनीदको लक्ष• कफपरतमोगुणअधिक होयतदिमूर्छाहोय १ अस्वायपित्तरजोगुण येअधिक होयतदिभोलिमरम्भांतिहोय २ कफवायच्चरतमोगुणत्र धिकहोयतदिनंद्राहोय ३ अरबलजातोर है तदिग्लानियाने अररुष सूं पराजीर्णं परषेदसं यांसूं भीग्लानिहोय ५ र बलथकीउ त्साहनहींहोयनीनेंत्र्यालसकहिजे ६ईनेंआादिलेबुद्धिवानरभी जाणिलीज्यो इहमनुष्यकाशशरकोवर्णन कस्यो इतिश्रीमन्महाराजाधिराजमहाराजराजराजेंद्रश्रीसवाईप्रतापसिंहजीविरचिते अमृतसागरनामग्रंथे ऋतुवर्णनंनामरितुचर्या १ दिनचर्या २ रात्रि चर्या ३ सारीर ४ सर्वांगासंयुक्तवर्णनंनामपंचविंशतिमःस्तरं• २५ समाप्तोयं मृतसागरनामग्रंथः ॥ शुभंभूयात् ॥ श्रीरस्तु
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