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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०७ अमृतसागर तथा मतापसागर तरंग २३ पटकनोसादरलैरंक २॥ फिटकडीले पाछैयांसारांनेदिन ३षरलक रैपाछैानसीसीसीकैकपडमिट्टी दे अरयेसासीमैयेोषदिम रेपाछेसीसीकैमूटेषामदेरवालुकाजंत्रमैसीसीमेलै पाछेउनेंभ ट्टीउपरिचढावे नीचेअग्निबाले क्रम मंद मध्यभरघणीइसीत रैअग्रिप्रहर३२कादेपाछेस्वांगसीतलहवां वालुकाजंत्रमेंसंसासी काटे पाछे सीसामाहामाईरससिंदूरकादिवांटिरनी रोजी नांपानसाथिषाय अरपथ्यरहेतोसर्वरोग.जुराजुदाअनुमा नसूंयोडूरिकरें? अरभूषलगावे, अरशरीरनैपुष्टकरेछे। इतिहरिगोरीरससिंडूरकीक्रिया. अथवा हींगलंकोकाटयो पारोअथवा योहीसुध्योपारो अरसोध्योनांवलासारगंधक यांदो न्यांनैबराबरिले अरयांनैवउकीजदाकारसमेदिनापरलकरें पाछैानसीसीसीकैकपडमिट्टीदेवेमेयेभरें पाछेईसीसीईट कीषामदे अरवालुकाजंत्रमैंसीसीमेले पाछेचालुकजंत्री परचढाय क्रम मंदमध्यपरतीक्षगांचदेपहर की पाछै ईनैखांगसीतलहुवांकाटै पाछैईसीसीमांहि का ईकोरंग हींगलू सिरीसोहोय योरतीपानमैषायतोगुणयोंकरै सर्वरी गांरिकरै इतिरससिंहरकाकिया.२ अथपारामारवा कीविधिलि पाराषरलमैंघालि गूलरिकाढूधमैपहर१पर लकरै पाछैईकीगोलीबांधे पाछैगूलारिकाधमैचोषोहींगधसि ईहींगकीमुसिदोयरवणावे पाछै पाराकीगोली,मुसिमें मेलि दूसरीमुसिकोमुंहंडोजोडिमुंसिकैषामकरैपाछैई सुकाय सेरा छापांकीभोभरिमैपकावै नदिओयारोसुपेदपिलिजायई कीभस्महोय याभस्मसर्वरोगमात्र. हरिकरेछे इतिपारामार . . . For Private and Personal Use Only
SR No.020035
Book TitleAmrutsagar Vaidyak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSawai Pratapsinh Maharaj
PublisherGyansagar Press
Publication Year1860
Total Pages590
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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