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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७२ अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग . २० रमैसूलचालै बेलक्षराजीमहोयत्तानेंजाणिजे ईकाउदर,बालक मूवोछे २ अथजीकापेटमैंबालकबोहोयतीकोकारण लिजीस्त्रीकोईभाई मातापिता पुत्रभारउगेरेकोईयारोम सेहोय अथवा वेंकाइयादिककहींतरेंसूजातारहे अथवा काउ दरकैकहींतरेकीचोटलागिजाय तदिवेस्त्रीकेदुषउपजे दिवेंड पकाप्रभाव कोगर्भघणोंडधाहोय अरकीकूषअनेकरो गपैदाहोय तदिवेंकापेटकोबालवेंकापेटमैमरिजाय ३अथग भिगीरत्रीकोअसाथ्यलक्षगलि जास्त्रीकोजोनिकोमूंदोमूवा बालककारदकिजाय अरकूषिमैसूलचालै गर्भमकलक संज्ञाकाहिजे अरपाछे कत्त्याउपद्रवसोभाहोय ४ प्रथमूदगर्भ काजतनालिजीस्त्रीकागर्भासयमैंभगकैक.बालकपुरीतर हायगयोहोय नाकैवानिपटचतुरघणाबालकाछीत, जगायाहोय ऐसीदाई.बुलाई अरबादाईबालकजणावांमैं कुशलहोय सोहाथकैघृतलगाय श्रोहाथचतुराईसंभगमेंघा लिबालकनैंसूधोकरिजीवनोहीनत्कालभगम्याहि पारेका छै५ अथगर्भमैंबालकमरिगयोहोयतीकोजतनलिष्य वानिपटचतुरदाईहोयसोचतुराईसंभगमैपाछगोछोटोअर तोषोपालि वेंगूबाबालककाअंगअंगकाटिचतुराईसंभगकैबा रैसर्वअंगकादैसोगूचाचालक.इसीनरेंभगमाहिसंकाटे नहीं तोवागर्भवती स्त्रीवेंकीसाथिमरे ईवास्तैनत्कालमूवागर्भनेनरें काटै परमूबाबालक.गर्भमाहिसकाव्यांपाछेभग¥चतुराई गरमपाएगी धोवै अरहीसमेंभगर्नेसुहावनागरमघृतमंथ वानेल भगनैचोपडेनौओभगकोमलरहे परवेंभगर्नेसूलादिक For Private and Personal Use Only
SR No.020035
Book TitleAmrutsagar Vaidyak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSawai Pratapsinh Maharaj
PublisherGyansagar Press
Publication Year1860
Total Pages590
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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