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अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग
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फोडाहोय
येईकालक्ष राजाणिजे २३ अथईको साभ्यलक्ष एएलि• जोपुरुषजलमैं काचमैं तैलादिकमें स्वानस्यालने देष श्ररपु कारऊ भरवांकीसी चेष्टा करि वालागजाय जलसेंभरे प्रोम रिजाय २४ अथस्थावरविषमात्रकाजतनलि० स्थावरविषजी पायो होय तीनैषधांसूं वसनकराजेनौस्थावरविषजाय १ वि षमात्रगरमछै वास्तैसीतलसर्वजननश्राछ्या २ अथवा सहत घृतसंयुक्तविषनेंइरिकारचा वालीओषदीदा जैनौ स्थावरविषजा य ३ अथवा स्थावरविषवालानैषटाईमिरचिदी जैनहीं पर वें नें भोजन मैंसाठ्याचाचल कोंडू सीधालूादीजे ५ अथविषकाडू रिकरि वा कोलेपलि० कुलप्रियंगु कांगणी की जड़ पान बकल फूल बीज परसिरस को पंचांग त्याने गोमूंनमेवारिलेपकरेनास्था वरविषकोरोगजाय ६ अथवा इसीविषकाइरिकरिवाकोले पलि० पीपलि छड लोट् इलायची कालीमिरचि नेत्रवाला सों नगेरू यांनेंजलसूंमिहींवांटिलेपकरैतौ इसीविषजाय ७ येस र्वजतनभावप्रकासमेंछे अथवा चोलाईकी जडनेंचांवलां कापाएणीसूंपीसीपी येतोस्थावरविषकोदोषरिहोय- प्रथजं गमविषकाजतनलि० अथमृत्युपासछेदितलि• हरडैका छालि गोरोचन कूठ श्राककाफूल कमलकीजड नरसलकीजड वेतकीजड तुलसी इंद्रजन मजीठ जवासो सतावरी सिंगाडा यां कोकाटोकरि तयेंगऊकोघृतपकावै पाछेये सर्वबलिजाय घृत मात्रश्रयरहै नदिईघृतमैबराबरिकोसहतनांषि ईको शरीरके लेपकरैतौ विषमात्रकोदोष साप का काठ्या उगेरे सर्वजिनांवरको विसरिहोय घृतनेषावामै लेपमें नांसमें दीजे ९ योभावप्र
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