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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९ ४४९ अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग अरताल वांगेंदाहलागे ईविषसंवेगो भामरे अथवा कालांतरसुंभ रै अथकंदविषसींगी मोहराच्या दिलेरतीकाषाका उगैरैकालक्षलि• सांगीमोहरादिकां काषावासूं मनुष्यादिक तत्कालमरिजाय हियोडूषे मूर्छाहोय शरीरमैदाहहीय तालबो बलै - अथस्थावरविषमात्र काश हुवा का याचाका एलि. स्थावरविषमात्रलूमो अरऊन्हुछें तीषोछे अरईको सूक्ष्मगुणछै रयोस्त्रीसंघघणकराव परयोसर्वशरीरमै तत्कालफेलीजाय अरऊगियावे यरतत्कालकोपरिपाक होय जायछे श्ररये स्थावरविषमें दशगुराछे ९ अथस्थावरवि बकाषावासूंजोरोगउपजे छे सोलि• विषकालूषापणांका गुणसूं मतिकुंविगाडे अरसर्वस्थानकाबंधानेकाटे श्ररविषका सूक्ष्मपणांकागुणशरीरका अंगअंग ओविषबढिजाय रविषकापराक्रमसूस्त्रीसंगघणोंकराचे ईगुएाथकीशरीरका दोषांनें अरशरीरकीधानानें परशरीरकामलनेंविगार्डे अर विषकाशीघ्रपणांकागुराथका शरीरकुंकुंशदेवै ईवास्तेविष काजतनत्र्अतिकठिनछै१० अथज्यांका शस्त्रांकै विषकी पाएगलागी होयत्यांकाला एलि• ज्यांकाशस्त्रां चिपकी पाएगलागी होयत्यांशस्त्रां की ज्यां कैलागै त्यांका घाव तत्काल पकिजाय अरवांघावामांहिसूलाही घणोंनीसरे पर वेंकोलो हीकालोहोय अरजीमेंडुगंधियणी रजाको मांसविष राजाय अरजांनति सलागे अरजीकैतापहोय अरजीकेदाह हो यमरमूर्छाहोय येजीमैंलक्षणहोय तदिजाणिजेकहीं वैरीश स्त्रकीधारकेविषदीयोछे तीकालक्षणजाएणजे ११ अथजी For Private and Personal Use Only
SR No.020035
Book TitleAmrutsagar Vaidyak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSawai Pratapsinh Maharaj
PublisherGyansagar Press
Publication Year1860
Total Pages590
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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