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अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग. माएणस्पाउपरिदहीसरी सोमठ्ठासरि सोधुंद यायजाय र वेनें क्यूं भादीसेनहीं पर वेंनेत्र में पीडादिकक्यूं भी होयनहीं तीनेत्रकोस लाकाकरि जालोउतारिजे पर इतनाच्यादमीकानेत्रको जालोउता रिजैनहीं पीनसकारोगवालाको पासीवालाको भजीवालाको मरपस्यालको वमनकरचोहोयजीको माथांकारोगवालाको अरका नमें पीउचाले नेत्रमैसूलचालैतींको इतनांच्यादम्यां कोने कोजा लोउतारिजैनहीं अरसांवण कार्तिक चैत्र यांमहीनांमैजालोउता रिजैनहीं अरसाधारणकालहोय नदिजुलाबदे शरीरनेंशुन्द्रक रिभोजनकरि श्राख्यानिर्मलस्थान बैठाय पवनादिकजैठेनहीं होयतैवैमध्यान्हपहली प्रांष्याकारोगमैं प्रवीएाचे सोवैद्य प्राष्यां कारोगनेंइरिकरि वालो भैसाकनैजालोलवावे श्रवैद्य हैसोवेने त्रकारोगीनेंपालथीकार वेठावे वेरोगी के पीछे स्याणाच्यादमीचतु रनैवेावेंत्र्योत्र्यादमी दोन्यूंहाथांरोगीनें पकडे वेनेहालवादेनहीं ईसीतरैवेनैं बेठावें पाठैवेंकीत्र्यांषिमै योवैद्यसलाकाघाले निपट चतुराईसूं वेंकीच्यांषिमें सलाका फेरेनेच काप्रांत भागमै जालानफो डिसारानेत्रको जालोइरिकरै पा छैवें जाला माहिसूवेंमाणस्यांऊपर लीवाधिकारकी बूंदढहण्डै नदिई मनुष्यनेंसर्ववस्तजथार्थदीपे अरसलाकाफेस्यांपही नेत्रनेंटांकीबाफसूफुकदेव सेवयुक्तक रिले रवैद्ययापकात्र्अंगूठा रोगीकानेचमसलिनेत्रकोमल येकठोकरिलें पाछैसलाका सूंजालोले अरवैद्य भी प्रापको हाथ रतरैहलावेनहीं ईविधिसूंनेत्रको जालोले पाछेरोगी की यणीवातर जमाकरि वेनेसुफायदे पाछेवेंरोगीकाच्यांषिऊपर घृतकाफोहाबांधै अरवेंरोगीनेंसुधोसुवाचेपवनचिलका उगेरै आबादेनहीं ईसी जाय
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