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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०२ १८ अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग क्षणलिप्यते जीकानेत्रकासंधिमैंनासूरपडिजाय - अरखेंमैं दुर्ग . धिलियांराधिप्राबोकरें तींनेसन्नियानभावनेत्रकी संधि कोरोग कहिजै ५ अथरक्तश्रावनेत्रकी संधिकारोगको लक्षणलि जोकानेत्रकी संधिमैंगरमलोही घोनीसरे तीनेंरक्तश्रावनेव की संधि कोरोगकहिजै ६ श्रथपर्वणी कानेत्रकी संधिकारो गकोलक्षएगलि० जीकानेत्रकी संधितांबाकावर्णसरीसीलाल होय रमिहींहोय अरपंकिजाय ईनपर्वणी कानेत्रकी संधिको रोगकहिजे ७ अथमलजीनामनेत्रकी संधिकारोगकोल क्षएगलि• जींकानेवकीसंधितांबासरीसीलालहोय परमिहीं अरबलननेलीयां परपकी सोनासरीसीहोय तीने अलजीनाम नेत्रकीसंधिकोरोगकहिजै - प्रथजंतुग्रंथिनामनेत्रकीसंधि कारोगको लक्षणलि० जीकानेत्र की संधि की गांठीमें कृमिप डिजाय अरसूवांफणी जाती रहे अरऊंठेषुजालिया अर वेंकानेत्रकासंधिमैंअनेकमिहीमार्गहोजाय अरनेत्रमै पीडाय एलीहोय तीजंतुग्रंथिनामनेत्रकी संधिकोरोगकहिजे ९ अथ नेत्रकाच्चौरसमस्तरोगत्यांकीसंष्यामरनामलि० वायको अभिष्यंद१पित्तकोअभिष्यंद २ कफकोअभिष्यंद ३ रक्तको भिष्यंद ४ वायकोप्रधिमंथ ५ पित्तकोत्र्मधिमंथ कफकोअधि मंथ ७ रक्तकोन्प्रधिमंथ - सशोथ पाक ९ प्रशोथ पाक १० ह ताधिमंथ ११ वातपर्याय १२ शुकाक्षियात १३ अन्यतोवात १४ अम्लाध्युषित १५ शिरोत्पान १६ शिरा हर्षे १७ अथनेत्रकी समता १ अरनेत्रकी निरामता २ अथनेत्रकावायकाच्यभिष्यंद ईन लौकिकमेंत्र्यांषपणीकडे नीको लक्षरालि० जीकी For Private and Personal Use Only
SR No.020035
Book TitleAmrutsagar Vaidyak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSawai Pratapsinh Maharaj
PublisherGyansagar Press
Publication Year1860
Total Pages590
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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