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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७९ अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग ૧ बांधेतौ काषोलाई पाछीहोय १४ अथप्रवपाटिकाकोजतन लिष्यते चाकणीवस्तसूं सधैं सर्वैकहावतौ सेककरैतीच्या पाटि कामाठी होय १५ अथनिरुद्धप्रक सककोजननलि० चूकाका रससमैतेलनेंपकायवेंतेलकोसेककरै अथवा भूरका धृत कोसे ककरैनौनिरुद्धप्रक संकपाख्योहोय १५ श्रथसंनिरुद्धगुदको जननलिष्यते सुहावनोगरमतेलकोसेककरे अथवा वायनेंद्र रिकरिवाला तेलत्यांको सेककरैतौसन्निरुडूगुदरोगजाय १७ अथवषणकछरोगकोजननलि• राल कूठ सांधोलूण सर स्यूं यानेंजलं मिहीं वांटि ईको टोकरे तोषणकडूरोग माल्यौ होय १८ अथगुदभ्रंसकांचिरोगकोजतनलिष्यते गऊकावृत्तनैत्र्यादिलेरचीकरणाद्रव्य सांसूं सुहाती सेककरे तो गुदभ्रंसजाय १९ अथवा कमलनीकाकोमलपान यानेसुकाय तीममिश्री मिलायटंक २॥ रोजानांषायतोकांचीनी कलती रहें २० अथवा ऊंदराकामांसको घृतती को कांचिके लेपकरैलाकांचिनीकलती है २१ अथवा डांसयां चित्रक लूटाष्यो वीलकीगिरि पाट जवषार येबराबारले ती कोमिहींचूर्णकरिटंक २॥ गऊंकीछा छिसूंरोजीनालेतोरभ्रंसनाम कांचिकोरोगजाय २२ अथवा मू साकोमांस वरदसमूल यांमें पाणी घालियां कोकाथकरे पाछे काथमेंतेलपकायले पाछे नेलकोमर्दन करैतो गुदभ्रंसकांचि कोरोगजाय गुदसूलजाय अरभगंदरये रोगजाय २३ इतिभूष कतैलम् अथवा उकछू ट्रीकोतेल मूषकतेलकीसीनाई करिता कालेप सूंगुदभ्रंसकोरोगजाय २४ अथवा ममालूली कोरस बोरकीजडकोरस दही छाछि ईमेंसूंठ अरजनवारघृत For Private and Personal Use Only
SR No.020035
Book TitleAmrutsagar Vaidyak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSawai Pratapsinh Maharaj
PublisherGyansagar Press
Publication Year1860
Total Pages590
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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