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३६७ अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग १७ अथकफकीममूरिकाकोलक्षालिष्यते जामैफुपस्पांसुपे दहोय अरचीकपाहोय अरवडीहोय अरजीमेषाजियावै परम दपीडाहायपरमोडापकै येलक्षराजीमहोयतीनेकफकामसूरि काकहिले ४ अथसन्निपातकीममूरिकाकोलसरालि. जीमेंफुगस्यांनालीहोय अरमोडीपकै अरघगीहोय अरचिपटि होय अरफेलिजाय अरविचमैषाडानेलीयांहोय अरजामैपीड पपीहाय अरजीमैराधिपडतीहाय येजीमेंलक्षाहोयतीनैस निपातकीममूरिकाकहिजे५अथरसमैप्राप्तिहईजोमसू रिकातीकोलक्षएलिष्यते त्वचामैप्राप्तिहाईजोगसूरिकार केसोपापीकबुदबुदासिरासीहोय अरयांमैस्वल्पदोषहोय पर उफूटेजदिवा,पाणीनीसरे अथलोहीमेंप्राप्तिहईजोम सूरिकातीकोलक्षरालिष्यने फुणस्यांकोलालाकारहोय अरयेततकालपकै अरत्वचामाहीहोजाय अरयेहीअतिदुष्ट हुईसाध्यनहींछे अरयेहीफूटीथकीलोहानैवहावैले अथमा समैप्राप्तहईजोमसूरिकातीकोलाररालिष्यते वेफरास्या कोरहोय अरचीकपीहोय अरमोडीपकै अरत्वचामांहिंहोय अरगानमूलचाले अरषुजालिहोय अरमूर्छाहोय अरदाहति सहोय- अथमेदमेंप्राप्तहईजोमसूरिकातीकोलक्षएलि. वेंफणस्यांमंडलकेत्राकारहोय अरकोमलहोय स्यूंकांचीहोय अरमभयंकरजुरहोय अरफरास्यांवडीअरचाकणीहोय अरमूलनैलीयांहोय अरजीमेसोहअरन्यपीतिहोय अरजीमें तापहोयईकोईकसोजीचे९ अथहाउमेंमीजमैमाप्तहई जोमसूरिकातीकोलक्षगलि. वेकपस्याछोटीहोय अरगात्र
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