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३५४ अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग फैलिजाय तदिवांमपित्तज्वरका सर्वलक्षणमिले पर वैकुपास्यां वेगदुरयणी फैलिजाय अरघणीलालहोय २ अथकफकावि सर्परोगको लक्षणलिष्यते आपकाकुपथ्यकाकरि वासूं क फकोपकुंप्राप्तिहोय सरीरमें छोटी मोटी फुणस्यांनें फैलायदे पा छेवामैषाजियावे पर वैपुणस्यांचीकएणीहोय वेंमैंक फजुरकासर्वलक्षणमिलें ३ प्रथसन्निपातकाविसर्परो गोलक्षएालिष्यते श्रपकाकुपथ्यकाकरि वासूं सन्निपा तकोपकुंप्राप्तिहोय सरीरमैंछोटिव डोणस्यापेदाकरि वांफु लस्यांनैसरीरमैंतत्काल फेलायदे परवांकुणस्यामपाछेकत्या सोलक्षणवा में होजाय अरसन्निपातज्वर कासर्वलक्षणहो जाय ४ अथवातपित्तविसर्परोगको लक्षणलिष्यते जींकासरीरमैवायपित्त आपकाकुपथ्यकाकरि वासूं कोपकूंपा प्तिहोय सरीरमैंछोटिचडिफुणस्यां पैदाकरै सोचैपुणस्यांस शरमें फैलिजाय नदियाग्नारव्यनामवांपुणस्यांनकहेगे ग्निसरीसोवांकोरूपहोय अरजी मैंवाय पित्तज्वर कालक्षणमि लै परछर्दि मूर्छा अतीसार तिस भ्रम येभाजी में होय परस शरका हाड अंगांमैपीडाहोय अंधेरीच्यावे अरुचिहीय सा रोसरीरंगारासिरी सोबले जींजींस्थानमेंहोय तांतीस्थाननें कालोक नांवे अथवा नीलोकरीनांवे अथवा लालकरिनां र्षे जैसेंलायकादाड्याकै मर्मस्थानमै फैलिजाय वेको अंगघणों पीडाकूंप्राप्तिहोय वेंकीसंज्ञाजाती रहे नींदयावेनहीं सासहो यावे हिचकी होयजाय सरीरमैचैन पडेनहीं मनदेहसर्वविंग डिजाय सरीरकोग्यांनजातोरहे योविसर्परोगनिपटअसाध्यजा
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