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: 300 •अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग. १५ कोरससेर १ काटे पाछेगउकोतपायाकडछलामैचटायवेने तातोकरेसोघृततातोहोय तदिवेंमैंरालपईसा भरनां वेनौप पलावै नदियोपांनांकोरसमसुसिजायजाडोहोजाय नदिवेमैंस थपईसा नीलोथूथोपईसासुरदासिंहपईसाभर येवांटिमै गांषियेकजीवकरि पाछैईनकपडालगाय फोराकाबराकेउ परिलगावेतो अरानिधाब्योहोय २० अथबराकरिऊंग कात्वचाकोरंगओरसोहोयजाय नीत्वचाकापर्णसिरी सोकरियाकीपोषदिलिष्यते मैएसिल मजीठ लाष दोन्यूं हलद येवराबरिले यांनैपृतसहतसूमिहींपांटि तुचाकैले पकरैनो सरीरकीत्वचासरीसोकोवाहोय २१ इतिनाडी अरारोगकोउत्पत्तिलक्षणजननसंपूर्णम् इतिश्रीमन्म हाराजाधिराजमहाराजराजराजेंदीसाईप्रतापसिंह जीविरचिते अमृतसागरनामग्रंथेलीपद विदयाबण सोथ सारीरबरा वायपित्तकफादिकांका आगुंतकबरा शरुषांदिकाका अग्निग्धपाथिभग्ननाडीवरायांस
रोगांकाभेदसंयुक्तउसत्तिलक्षाजतननिरूपनाम पंचदशस्तरंगः१५ अथभगंदररोगकी उत्पत्तिलक्षए जननलिष्यते गुदाकैयासपासचौगउदाईहोयदोय प्रांग उमाहिरासीहोय अरफूठेपाडारहवोकरै अरऊफुरा सीश्रववोकरै नैईवास्तेभगंदरकल्जेिछै भगकैवाचिहुंओर योहोयछ अरगुदाकैअरवस्तकेचीभीहोयछे भगवासात रैयांरोगहोयछे ईवास्तेईनयभगंदरकहेछै सोभगंदरपा चपकारकोछै वायको पित्तको२ कफको ३सन्निपातको४
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