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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८१ १४ अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग मूंटीमीढोहोय अरतालो अरगलोकफसंलिप्यौदा तीनै कफको गलगंडकहिजे२ अथमेदकागलगंडकोल क्षण लिष्यते योनी कोहोय कोमलहोय पीलोहोय पर मैंबुजालिहोय रवेमैपी डाहोय अरगलाकैघीयाकीसी नाईलटके पर वेंकीजडथोडीही य रवेंकादेहका अनुमानमाफिकयटैवधै अर पेंकोमूंढोचीक शोहोय रोगलाही मैं बोले ये लक्षणजी मैंहोय ती दकांग लगंडकहिजै ३ अथगलगंडकोप्रसाध्यलक्षगलिष्यते जीं कैसासनीठिया पर वें कोसर्व सरीर कोमलहोजाय रोव रस १ उलंघिजाय अरभोजनमैंरुचि जाती रहे अरसरीरक्षीण. पडिजाय अरस्वरम्प्राछ्यौ निकलैनहीं ओगलगंडवालो असाध्य जाणिजे ४ श्रथकंठमालाकोल क्षणलिष्यते जी कागलाकै अथवा कोषकै अथवा कांधीकै अथवा पेड़की अरजांमांकीसं धिमैं बोरप्रमाण अथवा भांवलाप्रमाण मेदकफकीघणीगाढी गांठपडिजाय तीनैवैद्यगंडमालाको रोग कहै छै । अथप्रप चीकोलक्षएएलिष्यते पर वाहीगंडमालाघादिनकीहोजा यर वेंमेयेलक्षणहोय चागांरिपकिजाय पर वेंमैंराधिपडि करिवहनीकलै अरबोऊंटे ही पैदा होती जाय अरमिटतीभीजा य अरदिनवेंमेंघणालागे तीनैवैद्य हैसोअपचीकहै अथ अपचीकांत्र्प्रसाध्यलक्षगलिप्यते पसवाडा में सूलहोय पा सहोय ज्वरहीय परवमनहोय येलक्षणहोयतो साध्यजा (राजै । अथग्रंथिजीनेगांठिक छै ती कोलक्षएगलिष्यनेवायपित्तकफहैसो लोहीनें मांसनैं मेट्ने नसांनेइसिनकरै रगोलऊंची सोईनैलीयांसी जोगांरितीने पैदाकरे सोईनें For Private and Personal Use Only
SR No.020035
Book TitleAmrutsagar Vaidyak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSawai Pratapsinh Maharaj
PublisherGyansagar Press
Publication Year1860
Total Pages590
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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