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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५९ अमृतसागर तथाप्रतापसागर नरंग ३ हरोगग्ररपिडिकारोगयांकाउत्पत्तिलक्षराजतनसंपूर्णम् रतिश्रीमन्महाराजाधिराजराजेराजेंदीसवाईप्रतापसिंह जाविरचितंअमृतसागरनामग्रंथेमूला मूत्राघात अ स्परशर्कराप्रमेह यांसर्वरोगांकाभेट्संयुक्त उत्पत्तिलक्षण जतननिरूपणनामादशःस्तरंगःसंपूर्णम् १२ अथमेदरो गकीउत्पत्तिलक्षणजननलिष्यते पणाग्रेसका करिया बैठ्यारहवासू दिनकासोवासू कफकारियलकाषावातूं मधुर नकापावासू पृतनेंपादिलेचीकणीवस्तकापावासू मेदवधैछेज दिमेदवथेतदिपुरषहेसोक्यूंभाकामकरिवेंकूसमर्थहीयनहायी निकम्मोहबोथकोपड्योरहै कुंओरधातजोछे हामीजाचार्ययेमें दनवध्यांथकांपुष्टहोयनहीं प्रोग्रादमानीकमोहोजाया अथ मेरंकापोरदौसलिणूंछंजीकैमेदहोयतीकैक्षदवासहाय तिसहोय मोहहोय कुराहतोसोवे सशरमैपीडाहोडीकवावे पसेवा सरीरमेंदूरगंधियावे मेथुनकरिवसिमर्थहोयन हायमेदवाकालक्षाडै अथमेदकोस्थानलिष्यतेप्राणिमा कैमेदहेसोउदरभैरहैछै ईकारणमेदहसोउदरवधानेछैपा छैउदरबध्योथकोअग्निनेदीप्यमानकरैछै कूमेदकारकैटक्यौ मार्गजिनको असोजोवायसोकोष्टहीमविचरैतदियग्निकुंडे दीप्यमानकरिषावाहीकीवांछारातदिमनस्यहेसोधगोपायो थको अनेकभयंकरबाजारानेपणादिनांमैपैराकरे पाछेउद रमेरहतोजोअग्नि अरपवन स्थूलज़ोओमेदवानोपुरुषती मैंवेदग्धकरै अँठेदृष्टांतीजेछ जैसैंवनमैरहसोजोअग्निप्रोप वनदग्धकरै पाछेमेदपगोवध्योथकोपेटमैरहतोजोवाय For Private and Personal Use Only
SR No.020035
Book TitleAmrutsagar Vaidyak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSawai Pratapsinh Maharaj
PublisherGyansagar Press
Publication Year1860
Total Pages590
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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