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२४२ अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग येलक्षण होयतीनें पित्त की पथरी कहिजे २ अथकफकीपथरी कोलक्षणलिप्यते पेडूमेंपीडघलीहोय पेडूसीतलहोयपरमास्त्रो होय की पथरीचीकी गिलगिलीहोय अरसुपेरहोय अर फूँकडाकाडाकी बराबरिहीय येजीमें लक्षण होयतीनें कफकीप थरीकहिजे २ अथशुक्रकारो किवा उपजीजो पथरीतीको लक्षणलिप्यते जो डोपुर पतीकेमैथुनकरि बाकी इछाहोय अ रश्रीशुकनैकैिक हीतरैजाबादेनहीं तींकेशुक्रकी पथरीपैदाहो य इंद्रीपरपोतांकेबीच श्रपनवीर्य सुकायपथरीकरिदे पाछैवापथरी पेडूमैं पीउचलावेभूतमहांकष्टसूंउतरे वादेपोना सूजिजायवें को शुक्रे जातो ही रहे वरपोइंडीने पीडाकरे नदिइंडी द्वाराकनीसरे अथवा ओइंडीनेंपीडितकरे तदिवाय सोचें पथरीका निपटछोटारैतसिरी साहूकडाकारदे नदिईनेंसर्करा कठै ४ ग्रथपथरीका उपद्रवलिष्यते सरीरइबलोहोजाय सरीरमैं पीडाहोय कृषिमेंसूलहोय अरुचिहोय सरीरपीलोहो
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मूत्राघातहोय धरनाभिपोनासूजिजाय मूंतरुकिजाय येई काउपद्रव अथपथरीरोगकाजतनलिष्यते सूंठ रएयूं पाषाणभेद कूट वरणो गोषरू परंडकीछालि किरमालाकोगि रि यंत्ररावरिलें यांनेजौकूटकरिटंक ५ को काटोकरे ताकी हींग जवषार सीधोलू येनांषि पथरीवालोमनुष्य ईकाटानें पीचेतौ बैंकोपथरीकोरोगमूत्रकृछ येदोन्यूंदृरिहोय परयोको गकीचायनें बवासीरनैं उपदंसने योइरिकरैछे परयोदीपन पाचन इतिसंख्यादिक्काथः अथवा इलायची पीपल म पाषाणभेद पनपापडी गोषरू अरसों अरंडकीजड ये