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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३९. अमृतसागर तथा प्रतापसागर नरंग १२ डाभकीजड कांसकीजड सांठांकीज परैंटीकीजड यांकोकाठोक रै ठंटोकरितीमेंसहतनांषिपीवैतौमूत्राघातरोगजाय १ अथवा कपूरनेजलसूमिहीवाट अरमिहीं वस्त्र कैंचेंकोलेपकरि वेंकीवाती करे पाछेवेंपातीनेंइंद्री में मेलें तौमूत्राघात कोरोगजाय २ अथवा धणों गोषरू यांदोग्यांकोकाटोकरि काटाकारसमें घृतपकाययोघृतषायतौ मूत्राघात मूत्र परशुक्रकोदोष येतीन्यूंजाय ३ इतिधान्यगोक्षुरको घृत अरजितनाजतनमूत्रल भरप थरी रोगका सोजितनाहींमूत्राघातकाजाणिली ज्यो ४ योभा वप्रकासमैंलिष्योछें अथवा तेबरसीकावीजटंक ५धटं क५यांनेरातिनेंभेयपाछेवेंही पाणी में परभातिनांटिछाणसी धोलू टंक एकनांषिपीवेत सूत्राघातजाय अथवा पाडल वृक्षकोषारटंक २|| संचरलूप टंक १॥ येदोन्यूं सुराकै साधिपी तौमूत्राघानजाय ६ अथवा पावाकीदारुषारिदाज्यूकोरस नांषि र वैमें इलायचीनांषियी वैती मूत्राघातरोगजाय यो हृदर्मेलिष्योर्छे अथवा सीलाजीतको सेवनकरैनोमूत्राघा तजाय - अथवा कौंछीकाबीजटंक ५ पीपलिटंक१ तालमंषा लाटंक १। मिश्री टंक १० मिनक्कादाषटंक १० यानेंमिहीनांटिगर महूधर्मेंसहनघृतपीवैतौ शुक्रकारोकिवाको मूत्राघानजाय ९ अरहप्रयोगबंध्याकैपुत्र उपजावावालो येसर्वसंग्रह मैंलिप्या अथवा चित्रकः।। गौरीसरटंक ५ बरैटीकीटक १. दाषमभपाव- इंद्रायणकीजडटंक ५ पीपलिटंक त्रिफला टंक१० महुबोटंक१० वडामांवलाटंक १०० पाणी सेर ९१६ मैंयां कोकाटोकरे पाछैयांको चतुर्था सप्रायरहै नदिई उतारिखा ७ LA For Private and Personal Use Only
SR No.020035
Book TitleAmrutsagar Vaidyak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSawai Pratapsinh Maharaj
PublisherGyansagar Press
Publication Year1860
Total Pages590
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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