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१०७ अमृतसागर तथा प्रतापसागरतरंग ९ अथउरुस्तंभरोगकीउत्पत्तिलक्षराजतनसंपूर्णम् अथ आमवातरोगकीउत्पत्तिलक्षाजननलिष्यते मंदाग्निवा लापुरसकै कुपथ्यकरिक चीकशोअन्नषाय अरषेदकरेनहीं त्रै सोजोपुरस नीकैचायकारकैंप्रेस्यो असोजोकचाअन्नकोरस सो कफकोस्थानजोहायो तीने प्राप्तिहोय अरोकचोहीरसवायक रिकनसांमोजायप्राप्तिहोय अरवायपित्तकफकारक घणोडूपीत हबोजोकचाअन्नकोरससोसरीरकीनसांनैपूरितकार अग्निकामं दपणा प्रगटकरेछ अरहियानैघरोभास्योकरिदेछै अरयोकचा अन्नकोरस ओमकोअरसर्वरोगहूकरैछै १ अथग्रंथांतर सुभाइहरोगकोलक्षालिष्यते मंदाग्नियालोपुरसअजीर्ण मैंभोजनकरैतदिवेंकापेटमेंांमदाहोय तदिवा प्रांमअने करोगांनैपैदाकरै मथवाय.करै सर्वगात्रमैपीडाकरै अरकांधा मैंपारिमें कटिमैं गोडामें यांमेयणीपीडाहोय अरनसांनसंकुचि तकारदेडे अरसरारनेस्तभितकरिदेछे येलक्षराजीमैंहोय नीं मैंआमवातरोगकहिजे अथग्रंथांतरश्रामचानकोलक्षण लिष्यते अंगामैपाडाहोय भोजनमैंअरुलाहोय निसघणीलागे आलसथायावे सरीरभावोहोजायजुरहोय अन्नपचनहीं अं गसूनोहोजाय यलक्षणहोयतीनेश्रामवातरोगकहिजे अथवा मवातरोगकोजतनलिष्यते ईर्नेलंघनकराजै अरसेककोई नैतीषोरसदीजै अरभूषलागे इसाओषदिदीजे ईनेजुलावरीजे ईनैवस्तिकर्मकराजेईकैलालरेन सेककाजेपरलूग सेकिवो ईनेजोगछै हईजोग्यछे यथवाकाअरबैगएकीतरकारीईने खुवाजे करेलाई जाग्यछै कोदूंजर सारीचावल पुराणाचावल
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