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१४९ अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग उनमः अंगुष्ठाभ्यां नमः कामाख्यायेतर्ज्जनीभ्यां नमः स्वाहा सर्वसिद्धि दायैमध्यमाभ्यांचषद् अमुककर्मत्र्यनामिकाभ्यां हुं कुरुकुरुकनिष्ठि काभ्यां वौषट् स्वाहाकरतलकरपृष्ठाभ्यां अस्मायफटू उनमोत्हृदया यकामारव्यायैसिरसे स्वाहा सर्वसिद्धिदायेसिषायैवषट् प्रमुकक र्मकवचायहुं कुरुकुरुनेत्रत्रयाय वौषट् स्वाहाम्यस्त्रायफटू अथ ध्यानम् योनिमात्ररारारायाकुंशुपासिनिकामदा रजःस्वलामहा तेजाकामाक्षीध्येययासदा मंत्रस्यसहस्रजपः १००. गुडहलका फूलांकी १०० आहूति मेंढलकीराषकरिराषै रुईमैभिलाय वेंकीचा तीकरणी गावातीतेलकादीवामैमेली दीवा की पूजा करणी दी वाकैच्प्रागेबालक आठवरसको अथवा इसवरसको पवित्रश डुवंशकोदेवनागडाको बालकस्थापण परश्रापभीपवित्रहोय मेंढलकाफलऊपरि ईमंत्रकाजपका संकल्पकोजलनांषण पर दीपकभागेयोजंत्रलिपि जंत्रकोपूजनकरण अरयोजनवालकनैं दिषावणौवे की हथेलीमैं अरमैंटलकीराषतेलोसणिवेकी हथेलीकैमसलणी पाछैवेनैवुफाएंगे श्रदेषैसोसर्वसमंचारसत्यक है अथवा आठदसबरसकी देवतागणकीकन्याबैठावणी पवित्रकुलकीवेनैदाषैसोक है दशांसमार्जन दशांसतर्पण दशांसत्रा म्हणभोजन इतिहाजरायतका विधिसंपूर्णम् यास त्यहाज रायतछै येसर्वउड्डीसमेलिष्याचे अथवा योजन हाजरायतको नींबकापत्र बच हींग सांपकीकांचली सि बांधिजै रसूंयांकी धूंगीदेतो डाकिएगभूतनेंत्र्यादि १ लेरसर्वदोसजाय अथवा कपासकाका कडा मोरकाचंदना कट्याली शिव कोनिर्मा
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