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१२९ अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग ७ पाछेमनबहवापालाजोनसायानैवेदोषमोहितकरैतदिमन स्यकोचित्तविगडिजायथिररहेनहींईनैहोलदिलकहेछ अथ उन्मादकोपूर्वरूपलिष्यते बुदिथिररहेनहीं सरीरको पराक मजातोरहै दृष्टिथिररहैनहींधारजजातोरहै पाछीतरैबोलेन होहदोसनोहोयजाय येलक्षणहोयतौजाणिजेपुरषकेउन्मा दहोसीअथवायकाउन्मादकोलक्षरालिष्यते लषीवस्त कापरउंदायस्तकाघाषावा घणाजुलाबकालेवासंधान काषाणपणांसं वायवधै नदियोवायहियानैविगाडै अरबुद्धि कोचरस्पराकोतनकालनासकरे तादमनुस्यहेसोषिनाकार यही हसेगावैनाचे योहाथ{मूदानैवानराकोसीनाईकरवाला गिजाय अररोषालागीजाय सरीरकोरअरकालोलालहोजाय परभोजनपयांपळुयोरोगवधेयेलक्षराहोयनौवायकोउन्माद जाणिजे अथपित्तकाउन्मादकोलक्षणलिष्यतेजारी मैंभोजनकरुणांकडवोषाटो गरम यांभोजन पित्तथैतदिम नुष्यकाटदाको पित्तहसोविगडिउन्मादनैंकरै तदिओपुरसकहींकी वातनैमानेनहीं अरनांगोहोजाय मारबालागिजाय रोलवालाग जाय बैंकोसरीरतानोहोजाय सीतलवस्तकावांछाराषे अरसरी रवानामनिपालीहोजाय येलक्षसहोयतौपित्तकोउन्मादजाणि जे अथकफकाउन्मादकोलक्षरालिष्यते भूषमंदहोय अ रजामघोषाय नदिपुरसकेकामकारवामैनालसघगोआचे नदिकैपित्तहेसोकफ मिलि परमर्मस्थानानैवधा नदिपुरस कीबुद्धिको अरस्मरणकोनांसकरै पाछे-काचित्तनैविगाडै पुर सनउन्मनकरिअरोपुरसकमबोल भूषजातीरहे स्त्रियाप्या
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