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आचा०
॥८४०॥
दुःख सहेनारा भगवान केवी रीते हता ते दृष्टांतथी बतावे छे. सुरो संगामसीसे वा संवुडे तत्थ से महावीरे । पडिसेवमाणे फरुसाई; अचले भगवं रीयित्था ॥१३॥
सूत्रम् एस विही अणुकंतो, माहणेण मईमया । बहुसो अपडिन्नेण, भगवया एवं रियति ॥१४॥ X॥८४०॥ __ जेम संग्रामना मोखरे श्रवीर पुरुष शत्रुना सैन्यना भाला विगेरेथी भेदावा छतां पण बखतर पहेरेलु होवाथी पाछो हठतो | नथी, तेज प्रमाणे भगवान महावीर पण ते लाढ विगेरे देशोमां परिषहरुप शत्रुओए पीडा करवा छतां पण कठोर परीषहोना दुःखोने मेरु माफक निष्कंप बनीने धीरजवडे संवृत्त अंगवाळा बनीने सहेता ज्ञान दर्शन चारित्ररुप मोक्ष मार्गमां विचरे छे. (१३)२ आज प्रमाणे गया उद्देशामां बताव्या प्रमाणे बुद्धिमान भगवान महावीर कदाग्रह विना दुःखो सहेता विचर्या
नवमा अध्ययननो त्रीजो उद्देशो समाप्त थयो.
चोथो उद्देशो कहे छे. त्रीजो उद्देशो कहीने हवे चोथो कहे छे, तेनो आ प्रमाणे संबंध छे के त्रीजा उद्देशामां भगवाने सहेला उपसर्ग परीषहोनें | वर्णन छे, अने आ उद्देशामां पण रोग आतंक पीडा आवतां पण तेनी चिकित्सा (उपाय) छोडी दइने भयंकर रोग उत्पन्न थया छतां पण बरोबर सहेता, अने एकांत तप चरणमां उद्यम करता, ते बतावशे. आ संबंधे आवेला उद्देशानुं आ प्रथम मूत्र छे:
मन को जिले के को देवी मामा की कीम, वा पाने व वर्ग पियो
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