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आचा० ॥ ८३५॥
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वळी (सङ्घाटी शब्दवडे ठंड दूर करनारां वे अथवा त्रण वस्त्र जाणवां) ते सङ्काटी शोधवा माटे ठंडथी पीडाएला विचारता | के अमे क्यांयथी मागी लावीए. अने अन्य धर्मोओ तो एवा समिध बाळवानां लाकडां शोधता हता. के जेने बाळीने ठंड दूर करवा शक्तिवान थइशुं तथा सङ्घाटीवडे एटले कामको विगेरे ओढीने रहेता..
म० शा माटे एवं करे छे ? उ०- कारण के आ हिमनो ठंडो पवन दुःखे करीने सहन थाय छे.
आवी सखत ठंडी ऋतुमां कोइ अन्य तापस विगेरे तापणुं तापी ठंड दूर करता, कोइ आ जैन साधु कामळो ओढी निभावता, तेवे समये भगवान शुं करता ? ते कहे छे:-आवी ककडती ठंडी अने ठंडा पवनमां बधा शरीरने पीडा थवा छतां भगवान् जेओ | ऐश्वर्य आदि गुण युक्त छे, तेओ समभावे ठंडने (तापणुं के कपडा बिना) सहे छे.
प्र० - भगवान केवा छे ? उ० - प्रतिज्ञा रहित छे. एटले तेओ ज्यां ठंडी न आवे तेनुं बंध कबजावाळूं मकान रहेवा विगेरे माटे याचता नथी. प्र० तेओ कइ जग्याए ठंड सहे छे ?
उ०- बाजुनी भींतो रहित तथा उपरनुं ढांकण होय के नहीं, तेवा स्थानमां रहेता, तथा फरी भगवानना गुण कहे छे, राग द्वेष दूर थवाथी शुद्ध आत्मा द्रव्यवाळा अथवा कर्मग्रंथि दूर थवाथी द्रव्य संयम छे. ते द्रववाळा द्रविक (संयमी) छे, तेम मकानमां ठंडी सहेतां कदाच घणी सखत ठंडी पीडे, तो ते ढांकेला मकानथी बहार नीकळी कोइ वार रात्रीमां वे घडी सुधी त्यां रही ठंडी सहन करी पाछा तेज मकानमां आवीने समताथी खच्चरना दृष्टांतथी सहेवा ने शक्तिवान थतां. बीजो उद्देशो समाप्त थयो.
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सूत्रम्
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