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आचा०
||८३०॥
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फक्त ज्यां छेलो पहोर (चरम पोरसी) थाय त्यांज मालीकनी आज्ञा लइने रहे ते बतावे छे. सर्वथा ज्यां रहेवाय ते आवेश छे. आवेशन - शून्यगृह तथा 'सभा' ते गाम नगर विगेरेमां त्यांना लोकोने माटे तथा आवेला नवा माणसोने सुवा माटे भोंतोवालुं मकान बनावे छे (गुजरातमां जेने चोरो कहे छे) प्रपाणी पात्रानी जग्या (जेने परव कहे छे) ते आवेशन, सभा प्रपा तेमां भगवाने वास कर्यो, तथा पण्यशाळा (दुकान) तथा पलिय एटले लोहार, सुतारनी ओसरीमां तथा पलालना ढगलामां अथवा मांचो उपर लटकाव्यो होय तेना नीचे रहे, पण तेना उपर न वेसे कारण के मांचो पोकळ होय छे. (२)
वली प्रसङ्गे आवेला अथवा आवीने त्यां वेसे ते मुसाफरखानु के धर्मशाळा ते गाममां होय अथवा गाम बहार होय तथा | आराम ते घर आराम तथा आगारमां कोइ वखत वास करे, तथा मसाणमां अथवा शून्य घरमां वास करे, (आवेशन तथा शून्य घरनो भेद ए छे के पेलानी भींत मजबुत होय पण बीजामां तेम नहीं कोइ वखत झाडना मूळ नीचे वास कर्यो. (३)
उपर बतावेल शयन ते वसतिमां ऋण जगतने जाणनारा ऋतुबद्ध काळमां अथवा चोमासामां भगवान तपस्यामां उयुक्त वनीने अथवा ध्यान राखनारा बनीने वास कर्यो.
म० - केटलो काळ ? ते कहे छे. प्रकर्षथी तेरमा वरस सुधी एटले वार वरसथी कंक अधिक मुदत सुधी आखी रात अने | दिवस संयम अनुष्ठानमां उद्यमत्राळा बनीने अप्रमत्त एटले निद्रा विगेरे प्रमाद रहित तथा विस्रोतसिकारहित धर्म ध्यान अथवा शुक्ल ध्यान ध्याय छे वळी
णिद्दपि नो पगाहाए, सेवइ भगवं उट्ठाए । जग्गावइ य अप्पाणं इसिं साई य अपडिन्ने ॥५॥
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| सूत्रम् ||८३०॥