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आचा०
सूत्रम्
॥८२०॥
८२०॥
छे. तेमां कोई निमित्तथी भेगा मळेला गृहस्थ अथवा बीजा दर्शनवाळाओथी भेगा थतां तेमने एकला जोइने कोइ वखत स्त्रीओ प्रार्थना करे छे. तेथी तेओ शुभ मार्गमां भुंगळ समान ज्ञ परिज्ञावडे तेमने जाणीने प्रत्याख्यान परिज्ञावडे त्यागता मैथुनने सेवता नथी. अने ज्यारे पोते एकला पण शून्य घरमां होय त्यारे भाव मैथुन पण सेवता नथी. आ प्रमाणे ते भगवान पोताना आत्मावडे वैराग्य मार्गे आत्माने दोरीने धर्मध्यान अथवा शुक्ध्यान ध्याय छे. (६)
तेज प्रमाणे केटलाक घरमा रहेनार अगारस्थ जे गृहस्थो छे. तेओ साथे कारण पडतां एकमेक थतां पण द्रव्यथी अने भावथी। मिश्र भाव छोडीने ते भगवान धर्मध्यान ध्याय छे. (तेमनी साथे कोइ पण जातनी बातचीत करता नथी.)
प्र-शा माटे भगवान बोलाव्याथी अथवा न बोलाव्याथी वोलता नथी. उ.-पोताना कार्य माटेज जाय छे. तेटला माटे तेओ बोलावे तो पण भगवान मोक्ष पंथने अथवा पोताना ध्यानने छोडता नथी. कारण के पोते संयम अनुष्ठानमां वर्त्तता होवाथी ऋजु (सरळ) छे आ संबंधमां नागार्जुनीया कहे छे.
पुट्ठो व सो अपुट्ठो व, षो अणुनाइ पावगं भगवं ।। कोइ ग्रहस्थ पूछे, अथवा न पण पूछे, तो पण भगवान पोते पापनी संमति आपता नथी
प०-हवे कहेवाती वात बीजाओने सुकर नथी (पण दुष्कर छे) तेथी अन्य प्राकृत पुरुषोथी पळाय तेम नथी, छतां पण भगवाने शा माटे ते आचर्यु ? ते बतावे ठे-बोलावनारा बोलावे तो पण प्रसन्न थइने बोलता नथी, अने जे नथी बोलावता, तेमना उपर कोपता नथी, तेमज प्रतिकूल उपसर्ग करवाथी पण भगवान, तेना उपर विरुप भाव करता नथी ते बतावे छे, भगवान ज्यारे
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