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सूत्रमू
॥१११०॥
फासमवेएउं, फासविसयमागयं । रागद्दोसा०॥१॥ फासी जीवो मणुन्ना २ईफासाई पडिसंवेएति पंचमा भावणा आचा
५। एतावता पंचमे महब्बते सम्म अवटिए आणाए आराहिए यावि भवइ, पंचम भंते ! महब्धय । इच्चेएहिं पंचमहब्ब
एहि पणवीसाहि य भावणाहिं संपन्ने अणगारे अहामुयं अहाकपं अहामग्गंसम्मं कारण फासित्ता पालित्ता तीरित्ता ॥१११०॥ किट्टित्ता आणाए अराहित्ता यावि भवइ ।। (मू० १७९)
तेनी आ पांच भावना छे. प्रथम भावना-मुनिए दर्यासमिति सहित थइ वर्तवू पण रहित थइ न वर्त; कारण के केवळज्ञानी कहे छे के जे इर्यासमिति || रहित होय ते मुनि प्राणादिकनो घात विगेरे करतो रहे छे माटे निग्रंथे इर्यासमितिथी वर्तवु. ए पहेलो भावना
बीजी भावना ए के निग्रंथ मुनिए मन ओलखवू एटले के जे मन पाप भरेलु, सदोष (भुंडी) क्रिया सहित, कर्मबंधकारि, छेद E करनार, भेद करनार, कलहकारक, पद्वेष भरेलं, परितप्त तथा जीव-भूतनुं उपघातक होय-तेवा मनने नहि धारयुं, बीजी भावना.
श्रीजी भावना ए के निग्रंथे वचन ओळखg एटले के जे वचन पाप भरेलुं सदोष (भुंडी) क्रियावा . यावत् भूतों पघातक 15 होय-ते, वचन नहि उच्चारवं. एम वचन जाणीने पापरहित वचन उच्चार, ए त्रीजी भावना. दि चोथी भावना ए के, निग्रंथे भंडोपकरण लेतां राखतां समिति सहित थइ वर्तवू पण रहितपणे न वर्शवु. केमके केवली कहे
छे के आदान भांड निक्षेपणा समिति-रहित निथे पाणादिकनो घात विगेरे करतो रहेछ. माटे निथे ते समिति सहित था वर्ग. ए चोथी भावना छे.
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