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आचा०
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| कुखमां सिंहना बानी माफक अवतर्या. ते समये श्रमण भगवान महावीर त्रण ज्ञान सहित हता तेथी देवलोकमां जाण्युं के हुं | च्यवीश गर्भमां अवतर्या पछी जाणे के हुं चव्यो, पण चत्रवानो काळ थोडो होवाथी तेनुं ज्ञान धतुं नथी के हुं चं छं.
त्यार पछी महावीर ने खरी भक्तिथी देवताए पोताना हंमेशना अचार प्रमाणे ८२ दिवस थया पछी आसो ( गुजराती (भादरवो ) तेरसना ते ब्राह्मणीना कुख मांथी त्यांथी थोडे दूर आवेला क्षत्रियकुंड नगरमां ज्ञातवंशीय काश्यप गोत्रना सिद्धार्थ | क्षत्रिय राजानी भार्या वाशिष्ट गोत्रनी त्रिशला क्षत्रियाणीनी कुखमां अशुभ पुद्गलो दूर करीने शुभ पुद्गलो मुकीने भगवानने आ | गर्भमां मुक्या अने त्रिशला क्षत्रियाणीनो गर्भ देवानंदानी कुखमां मुक्यो.
प्रभुने ज्यारे एक गर्भमांथी बीजे मुकवाना हता त्यारे ऋण ज्ञानवाळा होवाथी पोते जाणे के मने लड़ जशे तेम लइ जतां न जाणे के लड़ जाय छे। अने त्यां लड़ गया पछी मुके ते पण जाणे के मने सुक्यो, ( अवधि ज्ञानीने आज जणाय छे. के आ | प्रमाणे अमुक देवता करे छे, करशे के कर्यु.) वळी गणधरो पोताना शिष्योने कहे छे, हे आयुष्यमन् श्रमण ! ते काळ ते समय विषे ९ मास ने साडासात दिवसनी बने गर्भ स्थानमां गर्भ स्थिति पुरी करीने ग्रीष्मस्तुमा पहेलो मास वीजुं पखवाडीयुं चैत्र शुद १३ ना दिवसे निरोगी त्रिशला माताए निरोगी पुत्र श्रमण भगवान् महावीर ने जन्म आप्यो.
प्रभुना जन्म समये मधरात पछी भुवनपति वानव्यंतर जयोतिषी वैमानिक देवदेवीओना आववाथी आकाशमां एक महान द्रव्य प्रकाश अने कोळाहळ घयो.
अने ते समये देवदेवीओए आवीने सुगंधी जळ, सुगंधी वस्तु, चुर्ण फुल सोनारुपानी अने रत्ननी दृष्टि करी.
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सूत्रम्
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