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ज्ञाननो भागी थाय, श्रद्धा अने चारीत्रमा स्थिर चित्तवाळो थाय, आवां कारणोथी जेओ गुरुकुलबास नयी मुक्ता, तेवा । आचा०12 पुरुषोने धन्य छे. आवी ज्ञाननी भावना जाणवी. हवे चारित्रनी भावना कहे हे.
सूत्रम् साहुमहिंसाधम्मो सच्चमदत्तविरई य बंभं च । साहु परिग्गविरई साहु तो बारसंगो य ।। ३३८ ।। वेरगमप्पमाओ एगत्ता (ग्गे) भावणा य परिसंगं । इय चरणमणुगयाओ भणिया इत्तो तबो वुच्छं ॥ ३३९॥
H॥१०८५॥ ___ अहिंसादि लक्षणवाळो जैनधर्म श्रेष्ट छे. आ पहेला व्रतनी भावना छे तथा आ जिनेश्वर वचनमा निर्मळ सत्य छे तेवू चीजे | नथी. आ बीजा महाबतनी भावना छ, त्रीजा व्रतनी भावनामां अहीं पारको माल न लेवानुं बरोबर बताव्युं छे, चोथा महाव्रतनी
भावनामां ब्रह्मचर्यनी नववाहो पाळवार्नु अहीं बताव्यु छे, पांचमां महाव्रतनी भावनामां जरुरनां उपकरण सिवाय परिग्रहर्नु त्यागपणुं 8 | सर्वोत्तम जिन वचनमां बताव्यु छे
चार प्रकारनो तप पण अहीं इंद्रियोना विजय माटे तथा कर्मो खपाचवा माटे अहीं बताव्यो छे.
वैराग्य भावनामा संसारनां देखीतां मुखो परिणामे तथा अंतरदृष्टिए जोतां दुःखरुप छे माटे विष्टा समान जागीने दरथी 18 त्यागवा योग्य छे एम भाव...
अप्रमाद भावनामा जाणवू के जे जीवो दारु विगेरेना कुव्यसनां के क्रोधादि करीने के इंद्रियोने वश थइ केवां दुःख भोगवे र ते विचारी पांचे प्रमादोने छोडवानुं अहीं छे. एकाग्रभावनामां आ गाथा विचारवी.
" एको मे सासओ अप्पा, णाणदंसणसंजुओ । सेसा मे बहिरा भाषा, सत्वे संजोगलक्खणा ॥१॥"
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