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आचा०
॥१०५९॥
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रिंति निसीहियं गामणाए ते नो अन्नमन्नस्स कार्य आलिंगिज्ज वा बिलिंगिज्ज वा चुंविज्ज वा दंतेहिं वा नहिं वा अच्छिदिज्ज वा बुच्छि०, एयं खलु० जं सव्वद्वेर्हि सहिए समिए सया जज्जा, सेयमिणं मनिज्जासि तिमि || ( सू० १६४ ) निसीहियासत्तिकयं ।। २-२-९ ॥
ते उत्तम साधु रहेला स्थानमां अयोग्यताना कारणे वीजे स्थळे भणवानी जग्याए जया इच्छे, तो त्यां डां वगेरे पड्यां होय तो अमामुक जाणीने न जाय, पण इंडांविनानी फामु जग्या होय ते ग्रहण करे, आ प्रमाणे बीजां सूत्रो पण शय्या माफक समजवां ते पाणीथी उत्पन्न थयेलां कंद विगेरे पड्यां होय तो ते जग्याए पण भणवा न वेसे. त्यां गया पछीनी विधि कहे छे त्यां गयेला वे ऋण के वधारे साधु होय तो परस्पर एकेकनी कायानो स्पर्श न करे, तेम जेनाथी मोहनो उय थाय तेम वळगे पण नहि, | तथा कंदर्प प्रधान जेमां छे एवं मुख चुंबन विगेरे न करे, (मोढाने मोढुं न लगाडे) आज वर्शन साधुनुं सर्वस्थ छे, अने तेथी बधां परलोकना प्रयोजनवडे युक्त है, तथा ते प्रमाणे वर्त्तनार पांच समिति पाळतो जींदगी सुधी संयम अनुष्ठान आचरे, अने आज परम कल्याण छे, एवं उत्तम साधु माने.
निधिका नामनुं बीजं अध्ययन समाप्त भयं
उच्चार प्रश्रवण - त्रीजुं अध्ययन.
हवे त्रीजुं सप्तैकक अध्ययन कहे हे, तेनो पूर्वना अध्ययन साथै आ प्रमाणे संबंध छे, ते गया अध्ययनमां निषीधिका कही
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सूत्रम् ॥१०५९॥