________________
Acharya Shri Kailassagarsur Gyarmandir
२८.२२%
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobirth.org पहेरवानी विधि कहे छे, आ संबंधे आवेला उद्देशानु आ प्रथम मूत्र छे,
से भिक्खू वा० अहेसणिजाई वत्थाई जाइज्जा अहापरिग्गहियाई वत्थाई धारिज्जा नो धोइजा नो रएज्जा नो धोयर ताई आचा०
है सूत्रमू वत्थाई धारिजा अपलि उंचमाणो गामंतरेसु० ओमचेलिए, एवं खलु वत्थधारिस्स सामग्गियं ।। से भि० गाहावइकुलं ॥१०३२॥ पविसिउकामे सव्वं चीवरमायाए गाहावइकुलं निक्खमिज्ज वा पविसिज्ज वा, एवं बहिय विहारभूमि वा वियारभूमि वा
॥१०३२॥ गामणुगाम वा दृइज्जिाज्जा, अह पु० तिव्वदेसियं वा वासं वासमाणं पेहाए जहा पिंडेसणाए नवरं सब्वं चीवरमायाए॥
ते साधु साधुपणाने योग्य कपड़ा याचे अने जेवां लीधां होय तेवांज पहेरे. पण तेमां कंड पण शोभा करे नहि. ते कहे छे. लीधेला वस्त्रने धुए नहि, रंगे नहि तथा वकुशपणुं धारण करोने धोइने रंगेला कपडा काइ आपे तो पण लेइने पहेरे नहि तथा तेवां 18 साधुने योग्य कपडां पहेरीने बीजे गाम जतां वस्त्रोने छुपाच्या विना मुखथीज विहार करे, कारण के प्राये आ असार वस्त्रनो धारण करनारो छे, आज साधुनुं संपूर्ण साधुपणुं छे, के आवां सादां कल्पनीय वस्त्र पहेरवा.
बळी ते भिक्षु गोचरी जाय तो वस्त्रो वां साथे लेइ जाय तेज प्रमाणे स्थंडिल जाय अथवा अभ्यास करवा बहार जाय तो| 8. पण लेइने जाय, पण एटलं ध्यान राखवू के पिंडएपणामां कह्या मुजब वरसाद के धुमस वरसतां होय तो जिनकल्पी बहार न
जाय अने स्थविरकल्पी जोइए तेटलांज वख बहार लइ जाय, (आ मूत्रो जिनकल्पी आश्रयी छे, तेम वस्त्रधारीनुं विशेषण होवाथी | स्थविरकल्पीने पण लागु पडे, तो तेमां विरुद्ध नथी, पिंडैपणामां उपधिने लेइ जवानुं का. आ मूत्रमा वस्त्रोने आश्रयी कयुं छे,
ACCOR
)
For Private and Personal Use Only