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आचा० ॥१०२९॥
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लेतां कहे के हुं ते वखने वधे जोइ लडं, पण तेनी समक्ष एक छेडाथी बीजा छेडा सुधी जोया बिना लेबुं नहि, कारण के जाया | विना लेतां केवळी प्रभु तेम दोष बतावे छे, कारण के तेमां कांइ पण कुंडळ, दोरो, चांदी, सोनुं, मणी, रत्नावळी विगेरे आभारण बांध्युं होय, अथवा सचित्त वस्तु, जंतु, वीज, भाजी होय तो दोष लागे, माटे साधुनी आ प्रतिज्ञा छे, के बस्त्र देखीने लें से भि० से जं० सअंडं० ससंताणं तदप्य० वत्थं अफा० नो प० ॥ से भि० से जं अप्पंडं जाव संताणगं अनलं अथिरं अधुवं अधारणिज्जं रोइज्जत न रुच्चाइ तह अफा० नो प० ॥ से भि० से जं अप्पंड जाव संताणगं अलं थिरं धुवं धारणिज्जं रोइज्जतं रुच्चाइ, तह० वत्थं फासू० पडि० ॥ से भि० नो नवए मे वत्थेत्तिकट्टु नो बहुदेसिएण सिणाणेण वा जाव पसिज्जा ।। से भि० नो नवए मे वत्थेत्तिक नो बहुदे० सीओदगवियढेण वा २ जाव पहोइज्जा ।। से भिक्खू वा २ दुगंधे मे वत्थत्ति नो बहु० सिणाणेण तहेब बहुसीओ० उस्सि० आलावओ ॥ ( सू० १४७ )
ते भिक्षु लेवाना वने नाना जंतुनां इंडावाळु समजे, अथवा करोळीयाना जाळावाळु समजे तो मळवा छतां पण ले नहि, कदाच इंडा विनानुं होय, पण घणुं हीन (नानुं) होय तो काम पुरतुं न थाय, माटे अनल कहेवाय ते लेवुं नहि.
तथा अस्थिर (जीर्ण) होय, अथवा अध्रुव ते स्वल्पकाळ्नी अनुज्ञापना होय, तथा अप्रशस्त प्रदेशवाळु होय, अथवा खंजर विगेरे कलंकवाळं होय तो लेबुं नहि, तेज बतावे छे.
चत्तारि देविया भागा, दो य भागा य माणुसा । आसुरा य दुवे भागा, मज्झे देवीमुत्तमो लाभो, माणुसे अ मज्झिमो । आसुरेस अ गेलन्नं मरणं
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वत्थस्स रक्खसो ॥ १ ॥ जाण रक्खसे ॥ २ ॥
सूत्रम् ॥१०२९॥