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आचा०
॥१०९७॥
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योग्य छे, सरखी बांधणीवाळा शोभीता छे, विगेरे निरवद्य भाषा बोलवी.
से भिक्खू वा २ असणं वा० उबक्खडियं तहाविहं नो एवं वइज्जा, तं० सुकडेत्ति वा मुहुकडे इ वा साहुकडे इ वा कल्ला इवा करणिज्जे इवा, एयप्पगारं भासं सावज्जं जाव नो भासिज्जा ।। से भिक्खू वा २ असणं वा ४ उवक्खडियं पेहाथ एवं वइज्जा, तं० - आरंभकडेत्ति वा सावज्जकडेत्ति वा पयत्तकडे इ वा भद्दयं भवेत्ति वा ऊस ऊसढे इ वा रसियं २ मणुनं २ एयप्पगारं भासं असावज्जं जाव भासिज्जा ।। ( सू० १३७ )
साधुए कोई जग्या रस्सोइ तैयार थएली जोइ होय तो एम न कहेतुं के पकवान सारां कर्या छे, सारी तळ्यां छे, सुंदर बनाव्यां छे, कल्याण करनारां छे, बीजाए आवां करवा योग्य छे, आवुं सावय वचन साधुए बोलं नहि.
पण जरुर पडतां तेनुं चारे प्रकारनुं अशन विगेरे जोइने कहें के आरंभथी सावध प्रयासे बनावेलुं छे, तथा सारां होय तो सारां ताजा होय तो ताजा रसवाळां मनोज्ञ एम निर्दोष भाषा बोलवी. फरीथी अभाषणीय बतावे छे
से मिक्खु वा भिक्खुणी वा मणुस्सं वा गोणं वा महिसं वा मिगं वा पसुं वा पक्खि वा सरीसिवं वा जलचरं वा से तं परिवृढकार्यं पेहाए नो एवं वइज्जा-धूळे इ वा पामेइले इ वा वट्टे इ वा वझे इ वा पाइये इ वा, एयप्पगारं भासं साव जंजाब नो भासिज्जा ।। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा मणुस्सं वा जान जलयरं वा सेतं परिवृढकार्यं पेहाए एवं वइजा परिवृढकाएत्ति वा उवचियकापत्ति वा थिरसंघयणेत्ति वा चियमंससोणिएत्ति वा बहुपडिपुनई दिइएत्ति वा एयपगारं भासं असावज्वं नाव भासिज्जा ॥ से भिक्ख वा २ विरूवरूवाओ गाओ पेहाए नो एवं वडज्जा, तंजहा गाओ दुज्झाओति
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सूत्रम् ॥१०१७॥