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आचा०
॥१००५॥
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आयरि० सद्धिं जाव दजिज्जा ॥ से भिक्खू वा आय० सद्धि दूइजमाणे अंतरा से पाडिवडिया नागच्छि जा, ते णं त्ता एवं वइज्जा आउसंतो! समण ! के तुम्भे? कओ वा एह ? कहिं वा गच्छहि ?, जे तत्थ आयरिए वा उवज्झाए वा से भासिज्ज वा वियागरिज्ज वा आय रेउवज्झायस्स भासमाणस्स वा वियागरेमाणस्स वा नो अंतरा भासं करिजा, तओ० सं० अहाराईणिए बा० दुइजिज्जा ।। से मिक्खू वा अहाराइणियं गामा० दु० नो राईणियस्स हत्थे हत्ये जाव अणासायमाणे तो सं० अहाराइणियं गामा० दू० ॥ से भिक्खू वा २ अहाराइणिअं गामाणुगामं दृइज्जमाणे अंतरा से पाडिव हिया उगच्छिज्जा, ते णं पाडिपहिया एवं वइज्जा आउसंतो! समणा! के तुम्मे? जे तत्थ सव्वराइणिए से असिज्जा वा वारिज्ज वा, राइणियस्स भासमाणस्स वा वियागरेमाणस्स वा नो अंतरा भासं भासिज्जा, तत्र संजयामेव अहाराइणियाए गामाणुगामं दुइज्जिज्जा | ( मू० १२८ )
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ते भिक्षु आचार्य विगेरेनी साथे विहार करतां गुरु विगेरेथी एटलो दूर उभी रहे, के हाथ विगेरेनो स्पर्श न धाय, तथा ते | मिक्षु आचार्य विगेरेनी साथे जतां मुसाफरो पूछे के हे साधुओं! तमे कोण छो? क्यांथी आवो छो? क्यां जवाना छो? ते समये जे | आचार्य उपाध्याय विगेरे जे मोटा होय, ते उत्तर आपे, अथवा खुलासाथी समजावे, पण आचार्यादि उत्तर आपे, तेमां पोते वचमां कंड पण न बोले, तेमज जे रत्नाधिक ( चारित्रपर्याये के ज्ञाने मोटा होय ते) आगळ चाले, पोते पछवाडे चाले, अने चार हाथनी दृष्टि राखी चाले, ते भिक्षु वळी जे आचार्यने बदले रत्नाधिक साथे चालतो होय, तेमने पण हाथ विगेरेथी स्पर्श न करे, अने रस्तामां मुसाफरो मळतां ते पूछे तो रत्नाधिके उत्तर आपको, एटले सौथी मोटाए उत्तर आपको, पण ते मोटा साधु बोलता होय,
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सूत्र
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