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॥९९८॥
18/ पडेलु होय, तो बीजो रस्तो मळतां ते रस्ते न जवं, कारणके त्यां जतां बहु अपायो छे, पण बीजो रस्तो न होय, शक्ति न होय, 181 आचा08 तो ते मार्मे जतां सेनानो अजाण्यो माणस साधुने न ओळखबाथी बीजा माणसोने कहे के "आ जासुस आवेलो छे, माटे धक्को में
६ सूत्रम् | मारीने बाहुमांथी पकडीने बहार काढो" अने ते प्रमाणे कदाच करे, तो पण तेमना उपर क्रोध न लावतां समाधि विहार करे, ॥९९८॥ से भिक्खू वा० गामां० हज्जमाणे अंतरा से पाडिवहिया उवागच्छिज्जा ते णं पडिव हिया एवं वइज्जा-आउ० समणा!
केवइए एस गामे वा जाव रायहाणी वा केवईया इत्थ आसा हत्थी गामपिंडोलगा मणुस्सा परि वसंति ! बहुभत्ते बहुउदए बहुजणे बहुजबसे से अप्पभत्ते अप्पुदए अप्पनणे अपजबसे ? एयप्पगाराणि पसिगाणि पुच्छिज्जा, एयप्प० पुट्ठो वा अपुट्ठो वा नो वागरिजा, एवं ख ठु० जं. सबटठेहिं० (मू० १२६)॥२-१-३-२
ते साधु साध्वीने मार्गे चालतां मुसाफरो मळे, तेओ आ प्रमाणे पूछे के हे साधुओ! तमारा विहारमा आबेलं गाम के राज्यधानी केवी मोटी छे ! तथा अहीं केटला घोडा हाथी गामना भीखारीओ के माणसो बसे छे, अथावा घणु रांधेलं अन्न पाणी के अनाज मळे छे ? के ओर्छ भोजन पाणी के अनाज मळे छे ? एवा प्रकारना प्रश्नो पूछे, अथवा न पण पूछे, तो पण पोते बोलवू नहि, (भाषातर वाळा आचारांगमूत्रमा पाठ विशेष छे. एतप्पा गाराणि पसिणाणि णो पुच्छेज्जा आवा प्रश्नो मुनिए पण मुसाफरने पूछवा नहि,)
आज साधुनुं सर्व साधुपणु छे.
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