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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥९७६॥ आ प्रतिमा धारी साधु ज्यां उतयों होय, त्यां पत्थरनी शिला अथवा लाकडा सुवा योग्य पाटी विगेरे मळे अने गृहस्थ आचा० पासे याचतां मळे तो वापर, नहि तो उत्कटुक अथवा पलांठी वारीने रात पूरी करवी. इच्चेया णं चउण्हं पडिमाणं अन्नयरं पडिभ पडिवज्जमाणे तं चेव जाव अन्नोऽनसमाहीए एवं च णं विहरति ।। (मू० १०३) ॥९७६॥ ४ आ चारे प्रतिमाओमांनी कोइ पण प्रतिमाने स्वीकारनारो साधु होय ते बोजी प्रतिमा स्वीकारनारने निंदे नहि, कारण के ६ ते बधा जिनेश्वरनी आज्ञाने अवलंबीने समाधिथी रहे छे. से भिक्खू वा० अभिकखिज्जा संथारगं पञ्चप्पिणित्तए, से जं पुण संथारगं जाणिज्जा सअंडं जाव ससंताणयं तहप्प. संथारगं नो पच्चप्पिणिज्जा ।। (मू०१०४) हवे संथारो पालो आपवानी विधि कहे छे. मिक्षु पाछो आपवानो संथारो ज्यारे पाछो आपवा चाहे न्यारे तेमां देखे के गरोळी विगेरेनां इंडांथी व्याप्त होय अने पडिलेदहण करवा योग्य न होय तो ते पाछु आपे नहिं. से भिक्खू० अभिकखिज्जा सं० से जं. अप्पंड० तहप्पगारं० संथारंग पडिलेहिय २५० २ आयाविय २ विहुणिय २ 8 तओ संजयामेव पच्चप्पिणिज्जा ।। (मू० १०५) पछी ते अमुक वखत पछी जाणे के ते संस्थारमार्नु इंदु जीव रहित थयु छे तेवा संथारानी प्रतिलेखना करीने पुंजीने तडके तपाबीने सेज साज जयणाथी झाटकीने गृहस्थने पाछो आपे. हवे वसतिमां वसवानी विधि कहे छे, .. से भिक्खू वा० समाणे वा वसमाणे वा गामाणुगाम दुइज्जमाणे वा पुब्बामेव पन्नस्स उच्चारपासवणभूमि पडिलेहिजा, For Private and Personal Use Only
SR No.020012
Book TitleAcharanga Stram Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages328
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size15 MB
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